________________
[१६]
सत्यामृत
- -
मोह कुदेव ( मुही रुजीमा) विवेक का विरोधी। या पूग उपयोग है। पर गुणदर्शन के बिना मूढता कुद्देवी ( अतो नजीमी ) सरस्वतीको विरो- रूपदर्शन का बहुत कम उपयोग है।
_धिनी, मोह की पत्नी। गुणदर्शन (ग्मोदीगे) हप कोच ( दशो रुजीमा मक्ति मैत्री वत्सलता भगवान सत्य के गुणदर्शन के मागे में
दया क्षमा का विरोधी। अनेक बाधाएं हैं। बड़ी बाधा नीन है । १-कुर्सक्रोध कुहेव [सशो नजीमा ] न्याय का विगेयी। स्कार मोह आदि के कारण पाई हुई पनान्यता,
प का सैनिक। मीनता, आलस्य अज्ञान आदि के कारण पैदा मान कुदेच ( मठो सजीमा ) भक्ति और आदर हुआ अन्ध विश्वास, ३-सत्य के भिन्न भिन्न रूपी
का विरोधी। की ठीक ठीक परिचान न होने के कारण पैदर माया कुहेवी [ कूटो रुजीमी ! प की- हुआ एकान्न पापा 1 इन सत्र टोपण को दूर
चतुर सेविका। करने के लिय तीन बानो की आवश्यकता हैलोम कुदेव (लूमो रुजीमा } सयम, न्याय, मैत्री निष्पक्षता.२-परीनकता.३-समन्वयशीलता।
का विरोधी। निष्पक्षता ( नेटिपो) भर कुरेव [ डिडो सजीरा ] साहस का विरोधी। जिस प्रकार एक चित्र के ऊपर दुसरा चित्र कायरता कुदेवो । दिरों कजोगी ] भय की पत्नी। नही बनाया जाधकता, अधवा तब तक नहा प्रलोभन कुदेव (नौमो कजीमा) माया का भाई! बनाया जासकता जब तक नीचे का चित्र किसी
सबलता का विरोधी शोक कुदेव (शाको रुजीमा ) धैर्य का विरोधी,
दूसरे रंग से न दवा दिया जाय, उसीप्रकार जवतक मोह का पुत्र ।
हृदय पहिले से किसी कुसंस्कार या पक्षपात से घृणा कुदेवी [ ढस्सो रुजीमी ] द्वेष की पुत्री,
रंगा है तब तक उसपर सत्यश्वर का चित्र नही भक्ति मैत्री आदि की वनसकता। इसलिये मनुष्य को अपना हाय
निष्पन्न बनाना चाहिये । अगर वह अपना पक्ष उपेक्षा कुदेवी ( खटो रुजीमी) घणा की छोटी बहिन, मंत्री दिकी विशेधिना। समय के लिये तो उसे अपना वृदय नि पत्र बना
पूरी तरह न छोड सक तो कम से कम उतने कृष्णा कुश्वी [ ललमो रुजीमी ] लोभ की पत्नी ही लेना चाहिये जितने समय वह किसी नई बात
सन्तोष की विरोधिनी । पर या दूसरे की वासपर विचार कर रहा है. या ईया कुदेवी [डाहो स्नीमी ] मैत्री की विरोधिनी। उह शुद्ध सत्य को समझने की इच्छा रखता है।
इन दर्गण देवों की संख्या भी विशाल है। सत्यदर्शन के लिये निष्पक्षता जलरी है, इन गुणदेवों और दुर्गुणदेवा क रूपदर्शन से और निष्पक्षता के लिये दो तरह के मोहों का जीवन के विकास का मार्ग सिललाता है। देव त्याग करना जरूरी है। १-स्वत्व मोह २-कालकप में इन देवा' का दर्शन क ने से भावना मी सोह । तृप्त होती है और अनाथता असहायता के संकट . स्वत्वमोह ह एमा मोहो] मे आशा धनी है तसली ग्लिनी है । जहा तक स्वत्वमोह का अर्थ है अपनी चीज का भावना का सवाल है इस गुणों का इस तरह मोह । अधिकाश लोगों को सत्य असत्य की रूपरशंन करना चाहये।
पर्वाह नहीं होती। ये सच्चाई का निर्णय अपनेहापिसे उपदर्शन की तरफ मचि न हो, पन से करते हैं। हमारे विचार अच्छे, हमारी सिर्फ गुणदर्शन ही करना चाहना हो वह वैसा भापा अच्छी, हमारी लिपि मच्छी, हमारा देश करे, रूपदर्शन के बिना भी गुणदर्शन का काशी श्रच्छा, हमारी पोषाक अच्छी, हमारे सब तरीके