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________________ दृष्टिकांड १.१५ न्यायदेव [उकोजीमा ] विवेक देव के मुनीम। ध्यानदेव (मुन्नोजीमा ) सत्यलोक का सारथि कृतज्ञतादेवी ( मन्त्रजेवीजीमी ] न्यायदेव की पत्नी गुणदेव कुटुम्ब काफी विशाल है समन्वय देव शत्तोजीमा ] विवेक देव के पुत्र ।। चिन्तन देव [ईंकोजीमा ] विवेक देव और सर अधातव्रत देव (मोडिंडोजीमा ) सत्यवचन देव स्वती देवी के पुत्र। (सतिकोजीमा) ईमानदेव [शुकोजीमा ] ये तीन सन्तोष देव [सुशो जीमा ] संयम का मित्र। संयमदेवके पुत्र हैं। सदोष देव ( सुशोजीमा ) विरक्ति देवी [सुमिचोजीमी ] संयमदेवकी सेविका सर्जनदेव (सुअोजीमा) निरतिग्रहदेव (नेगुप्रयोगदेव निजोजीमा ] विज्ञान देवका सेवक शोजीमा , निरतिभोग देव (नेमेजुशोजीमा) ये श्रमदेव शिहोशीमा ] उद्योग देवका मित्र । चा संयम देवके नाती है। दानदेव दानोजीमा] शृङ्गार देव शिंजोजीमा ] कामदेव और कला निरतिग्रह देव का मित्र और भक्ति आदि देवियों देवी का सेवक। का सेवक है। इस प्रकार और भी सैकड़ो देव इस गुणदेव कुटम्ब में है। ऊपर इनके मुख्य मुख्य अनुभव देव [इकिनोजीमा ] सरस्वती बाजार के रिश्वे वताहिये गये हैं पर इसके सिवाय भी इनमे बड़े मुनीम। अनेक रिश्ते हैं। जैसे विवेकदेव, भगवान भगवती विद्यादेवी जानोजीमी ] अनुभवदेवकी पली और मुक्ति के बाद सबके शासक हैं। और बहुतो हसीदेवी [ हिसोजीमी ] कामदेव और कणदेवी के मामी हैं। जब कोई देव विवेक के अंकुश की सखी। मे नहीं रहता तब वह एक तरह से कुठेव हो रतिदेवी (कमोजीमी ] कामदेव की सेविका ! जाता है। यत्नदेव [घटोजीमा ] संयम विज्ञान उद्योगदेव ।। का मित्र। दुर्गुणदेव या कुदेव (रुजीम) देवदेव [यूडोजीमा ] यत्नदेव का मुनीम दुगुणदव गुणदेवों के विरोधी प्रतिस्पर्धी जिज्ञासादेवी जानिशोजीमी ] सरस्वती देवी की श्रादि हैं। ये आनन्द के मार्ग में बाधा डालते हैं। द्वारपालिका। इनकी संख्या भी विशाल है। पर कभी कभी ये वाणीदेवी [इकोजीमी ] सरस्वती देवीकी दासी। विवेक की कक्षा में प्रावैठते हैं तब इनके द्वारा लिपिदेवी | लिस्चोजीमी ] , कुछ काम आनन्दवर्धक होजाता है। जैसे अभिसहिष्णुता देवी [ फोशोतीमी तपस्या और क्षमा मान यदि विवेक की कक्षा मे आबैठे तो वह देखी की सखी असंयम का विरोध करने लगता है। "मैं ऐस सफलता देवी फलोजीमी 7 तपस्या देवीकी पत्री उच्च कुज्ञ का व्यक्ति एसा नीच काम क्या धैर्यदेव [घिरोजीमा ] नपस्या देवी का भाई। करू" इत्यादि स्थानो मे अभिमान पाप का आशादेवी आशोजीमी ] धैर्यदेव की पत्नी। प्रतिस्पी होजाता है। रूढ़ि और मोह के वश साहसदेव [मोजीमा ] शक्तिदेवी का भाई। मे होकर भी कभी कभी आदमी अच्छा काम कर वैभव देव [धूनोजीमा ] लक्ष्मी देवी का भाई। जाता है। इसप्रकार द्वगुण देवो को भी सत्येचतुरता देवी (चन्तोजीमी ) कलादेवीकी सखी। श्वर के दवार में स्थान मिलजाता है। सेवादेवी (सिवोजीमी) भारदेवी आदि की पर साधारणत: दुगुण देव आनन्द के पथ सखी। मे रोड़े ही टकाते हैं इनसे बचने के लिये विनयदेव (नायोजीमा ) भक्ति और तपस्या- संक्षेप में इनके नामादि का परिचय दिया जाता देवी के छोटे भाई के समान मित्र। है यो अधिकांश दुगुण देवो का परिचय गणदेवों आदर देव ( मोनोजीमा) मक्तिठेवी के छोटे के विरोध का विचार करने से सहज ही सम भाई के समान सेवक। मे आसकता है।
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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