SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दृष्टिकांड [ १७ -- --- -Pre m अच्छे, हमारा धर्म अच्छा, हमारे पुरखे अच्छे हमें मुफीद होगया है वह हमें ग्यारा होसकता है, श्रादि । सल्यदर्शन में यह बड़ी भारी बाधा है। वे पर सब से अच्छा नहीं। इसके लिये हमें ऐसी समाई को अपनाना नहीं चाहते किन्तु अपनी कसौटी बनाना चाहिये जो बहुजन हित की दृष्टि चीजपर सच्चाई की छाप मारना चाहते हैं। से ठीक हो! जैसे धर्म के बारे में यह देखना पर इस अपनेपन का सच्चाई से चोई चाहिये कि क्या उसका रांचा आज की समसम्बन्ध नहीं है। अपनापन जिन कारो से स्याओं को सब से पच्छी तरह से हल करसकता पैदा होता है उसका सच्चाई से कोई सम्बन्ध है ? भाषा की दृष्टि से यह देखना चाहिये कि क्या नहीं होता। अधिकांश अपनापन जन्म के कारण नये आदमी को भी वह सीखने में सरल है। होता है। जिन लोगो में हम पैदा होते हैं उनकी इसी द्वैग से सब बातों का विचार करना चाहिये। सब बातें हमे अच्छी लगने लगती है, चाल्या. किसी चीज को या व्यक्ति को हम अपने लिये वस्था के संस्कारों के कारण कुछ आदत भी वैसी सब सं अधिक प्यारा कहकर भी सब से अच्छा पड़जाती है। पर इस बातपर हम जरा गहराई या पूर्ण सत्य कहने की भूल न करे, इसकलिगे से विचार करें तो अच्छेपन की यह कसौटी हमे हमे ठीक परीक्षा करके ही निर्णय करना चाहिये। गलत मालूम होने लगेगी। साथ ही यह बात न भूलना चाहिये कि जैसे हमारा जन्म हमारे चुनाव से नहीं हुआ। संस्कारवश हमे अपनी चीज प्यारी लगती है जन्म के पहिले हमने किसी जगह बैठकर यह उस उसी तरह दूसरे को भी अपनी चीज 'यारी लग निर्णय नहीं किया था कि " इस संसार में सबसे सकती है। इसलिये जो चीज हमे प्यारी है वह अच्छे मा-बाप कौन हैं जिनके यहा हम जन्म ले, दूसरे को प्यारी क्यों नहीं, इस विचार से दुखी सब से अच्छी भाषा कौन है जिसे बोलनेवालो या द्वेपी न होना चाहिये। इस बारे में उदार में हम जन्म ले, सब से अच्चा जलवायु कहा का रहना रहना चाहिये। और सत्य के मामने विनीत है जहां हम जन्म लें, सबसे अच्छे रीतिरिवाल रहना चाहिय। कहा के है जहां हम जन्म लें, सब से अच्छा धर्म ___ सार यह कि हम अपनी चीज को अपनेपन कौनसा है जिसमे हम जन्मले शादिमी हालत के कारण सच्ची समझने की कोशिश न करें, में अपनेपन के कारण किसी चीज को सत्य सम किंतु जो बात सच्ची सिद्ध हो उसे सच्ची मानने झाने का क्या अर्थ है ? जहा हम पैदा हए वहीं की तथा अपनाने की कोशिश करे। की चीज को हम अमला या सत्य कहने लगे, जहा जो अपना सच्चा वही यह है दुगै कुटेक। कोई दूसग पैदा हुअा वहा की चीओ को वह सो सच्चा अपना बही रक्खो यही विवेक !! अच्छा या सत्य कहने लगे, इस कहने का क्या स्वत्वनोह के कारण मनुष्य से अनेक बुरामूल्य होसकता है? इयाँ आती है जो स्वपर कल्याण में विघातक . हा जन्म या संगति के कारण हमे कुछ और सत्यदर्शन में बाधक है। कुछ ये हैंबातो की आदत होजाती है, सम्पर्क आदि के १. सत्य की उपेक्ष हसल्या ये खटो ] कारण कुछ म्नेह भी पैदा होजाता है ऐसी हालत २ सत्य का विरोध [ सत्योपे फूलुरो ] में उनसे कुछ विशेष प्यार होजाय यह स्वाभाविक ३. झूठ की बकावत [मियो पे वारो] है, तब हम उन्हें पारा कहें यह किसी तरह ठीक ४ पेक्षक श्रेयोपहरण [ खटीर लेफेमो-छन । है पर अपनेपन के कारण उसे सब से अच्छा ५ धातक श्रेयोपहरण [हिंडर लेफेमो छेनो] कहने की मूल न करें। जो खानपान हमारी ६ सत्य का अस्वीकार [ सत्योपे नोअम्मो ] आदत में शुमार होगया है, जिस भाषा की हमें --जिस राज्यपर अपनेपन की छाप नही वाल्यावस्था से आदत पड़गई है, जो जलवायु लगी रहती उसपर स्वत्वमोही पूरी तरह उपेना
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy