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________________ - की। जिसकी जैमी चि हो उसको उसी ईग से २-उपयुक्त पदार्थो का क्रम से प्रत्यक्ष । काम कान देना चाहिये। खेद से इस बात का है किसी भी समय के किसी भी क्षेत्र के कि पर्रानन्दा आदि के संस्कार जितने डाले जाते पदार्थ का इच्छानुसार प्रत्यक्ष। है उतने असली धर्म के (सत्य अहिंसा सेवा शील ४-समस्त शास्त्रो का ज्ञान त्याग इमान्दारी श्रादि के) नहीं डाले जाते। शास्त्र का परिपूर्ण ज्ञान । अगर असली धर्म की तरफ हमाग ध्यान आक ६-अपने जमाने की सत्र से बड़ी विद्वत्ता . पित किया जाय तो सभी धर्मों में हमे असली ७-लोगों की जिज्ञासामा को शान्त करने . धर्म दिखाई दन हगे । और धर्म र नाम पर हम योग्य ज्ञान सब से प्रेम करने लगे, एक दूसरे के घर के -आरज्ञाना समान एक दूसरे के धर्मस्थानों में आने लगे. कल्याण मा के लिये उपयोगी वाता जिस विविधता में हमें विरोध दिखाई देना है का अनुभव क पर्याप्त ज्ञान। इसमें अनेक रसवाल भोजन की तरह विविधता -यह गन्यता असम्भव और अनर्थकर फा भानन्द प्राने संगं । इसलिये वालको के ऊपर है। इसमें वह सी बाधाएं है पहिली बाधा यह एसे ही समभावी संस्कार हागना चाहिये जिससे है कि पदार्थ की अवाएं अनन् हैं औ सबका वे एफपता के गुनगम न हो एकता के प्रेमी हों। प्रत्यक्ष कने के लिये एक अन्तिम कवर का इस कार के संस्कारो से धमों का पारस्परिक जानना जरूरी है परन्तु वस्तु की कोई निगम विरोध दूर हो जायगा। अवस्था ही नही है । तब उस पूर्ण प्रत्यक्ष कैसे ___ सर्वजना की उचित मान्यता प्राय हर हो सकता है। अन्तिम अवस्था जान लेने पर वस्तु का अन्त जाया जोकि असम्भव है। या धर्मवान ने यह मान लिया है कि हमारे धर्म दूसरी शवा यह है कि एक समय में एक है। उसका प्रणेना सर्वज्ञ था किसी ने मनुष्य को सुर्वज्ञ मनुष्य का स्वज्ञ योग हो सकता है अगर हम इस मनुष्यों को माना, किसी ने ईश्वर को सज्ञ मागकर अपने एक साथ खें तो हमें सामान्य मनुष्पज्ञान होगा धर्म की जड वहा यताई किसी ने अपने कर्म को दस मनुष्यों का जुदा-जुदा विशेषज्ञान नहीं। अपौरपेट-प्राकृतिर-मानार प्राणिमात्र की शक्ति इसलियं अगर कोई त्रिकाल त्रिलोक का युगपत स पर बताया। जनलय ह कि ाय हरएक प्रत्यक्ष करे वो उसे सब पढायों की मय अव. धर्म का अनुयायी बसवा करता है कि कुछ स्थानों में होनेवाली समानता का ज्ञान होगा। जानने या वह सा जानाल । उससे सप वस्तु और सत्र अवस् ाओ का ज्ञान नहीं। अधिक लाना नहा जामका। इसे अधिक प्रश्न- बहुन से लोग एक ही समय में जानने का दावा करते हैं वे झूठे हैं । सर्वक्षना [ अनेक तरफ उपयोग लगा सकते हैं। साचार, की रेम मुचित रूर ने सुगर का और विकास लोग भी एक ही समय में बहुत सी चीज का पा रानाको बन्द कर ही दिया. माथ ही अपने प्रत्यक्ष कर लव है नर युगपत् पस्यज्ञ में श्या ही धर्म , समाजकल्याण करनेवाले अन्य भापत है ? नमा का तिरस्कार गया, वृणा कराई। उत्तर--ग्नि की एक छोटी सी मशाल मर्गना की गन्यता क तरह की है। प्रगर जोर से घुमाई जाय तो वह मशाल जितनी -गारा गन्न क्षेत्र के समस्त जग में घूमेगी अनी जगह में सब जगह पर nari निसार नगपात प्रत्या। साबाई दगी पर एक समन में बा रहती
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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