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________________ d - u - - - - - - - - -- - - - - है एक ही जगह । इसी कार जब बहुन जल्दी- उपयोग भी काफी हुआ है। अन्तिम अर्थात् जल्दी उपयोग बदलता है तब वह ऐसा मालूम नवमी अधिक अच्छी है । तीर्थकर पैगम्बर आदि होता है मानो सब जगह एक साथ है। यह एक इसी परिमापा के अनुसार सर्वज्ञ होते हैं । इस. भ्रम है जो शीघ्रता के कारण हो जाता है। लिये उनके वचन काफी विश्वसनीय है। तीसरी बाधा यह है कि असन का एस्यक्ष ___ इन साज्ञा से सब विपयों के विरोप ज्ञान नहीं हो सकता। अत्र पदार्थ किसी माध्यम के की आशा न करना चाहिये और न अन्य विषयो । द्वाग हमारी इन्द्रिय और मन पर प्रभाव अलता में इनके वचन प्रमाण मानना आवश्यक है। धर्म है तब उसका प्रत्यक्ष होता है जो पदार्थ नष्ट ही विषय मे भी यही कहा जा सकता है कि वह अपने युग का सर्वाज्ञ था ? देशकाल पात्र के बद. हो चुके या पैदा ही नहीं हुए ये क्या प्रभाष लने से जो जो परिस्थितियाँ पैदा होसकती हैं बालगे तब उनका प्रत्यक्ष कैस होगा इसलिये भी और भविष्य मे हो जायेंगी उन सब का पूर्ण । त्रिकाल त्रिलोक के पदार्थों का प्रत्यक्ष नहीं हो ज्ञान उसे नही था। इसलिये आज अगर ऐसी । सकता। परिस्थितियाँ पैना होगई हैं जिसके लिये पुराने । क्रम से प्रत्यक्ष भी असम्भव है ! क्या विधान काम नहीं देसकने तो हमे अपने चुग के कि अनन्त क्षेत्र और अनन्त काल का कम से अनुकूल विधान बना लेना चाहिये, दूसरे धर्मो' मस किया जाय तो अनन्त काल लग जायगा। में अगर कोई विशेष बात पाई जाती है तो उसे और मनुष्य जीवन को बहुन थोड़ा है। इस- अपना लेना चाहिये । इस प्रकार सुधार के लिय लिय अमन्त का कम से भी प्रत्यक्ष नहीं हो सदा तैयार रहना चाहिये । अपने धर्स को सदा सकता। के लिये परिपूर्ण न समझना चाहिये। दसरी शत यह है कि कम से प्रत्यक्ष में न पाच वातों पर विचार करने से धर्म । पहिले बानी हुई बातो की धारणा करना पड़ती विरोध दर होजाता है। है। जब मर्यादा से अधिक धारणा की जायगी . ने जीवन का सभ्यता संस्कृति का बहुत तर पुरानी बाता की धारणा निटने लगेगी। इस बडा भाग घेर लिया है, उसमें समन्वय या समकार क्रम से पात्यक्ष में न तो सभी पदार्थ जाने भवन होने पर जीवन का विकास रुकजाता है। ला सकते हैं और अगर किसी तरह जाने भी और सहयोग मी टूट जाता है। इसलिये धर्म: जॉय तो-न उनका धारण करना सम्भव हैं। समभाव आवश्यक है। .. ३-ग्रह भी असम्भव है क्याकि असत् इसका पूरा मतलब यह है कि जीवन के • पदार्थों का प्रत्यक्ष नहीं सका। विना माध्यम प्रत्येक आचार-विचार में निष्पक्षता होना चाहिये के हम किसी पदार्थ को नहीं जान सकते। जो मेरा है वह सत्य है, इसके बदले जा सत्य । ४-शास्त्र रचना की प्रारम्भिक अवस्था में वह मेरा है. यह भावना होना चाहिये। एसी सर्वज्ञता सम्भव थी! अंब शान नाम का इसके सिवाय एक शान. ग्रह भी ध्यान - वृन इतभा. महान और शाखारशीग्या-बहल हो रखना चाहिर कि यदि कई बार हमारे लि. गया है कि उन सब को छू सकना कि मनुष्य हितका नही है किन्तु दूसार उसमे लाभ . की शक्ति के बाहर है। . रहा है तो उसके पति सहानुभूति रखना चाहिये ___ पाच से आठ तक की परिभाषाएं सावा हम जो भाषा बोलते हैं, हम जिनप्रकार के विटा रगत. ठीक है । भूनकाल मे इन परिभाषा का चारस पालन करते हैं. हम जिलाकार
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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