SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - पहिली कक्षा पढ़ाने वाला और चौथी कना पदाने- चाहये । मांस-मनण-निपेर को जोरदार बनाना वाला, ये दोना समान नोग्यता रखकर भो कक्षा चाहिये। महायान सम्प्रदाय के द्वारा आये हुए के छात्रो की योग्यता के अनुसार ऊँचा-नीचा अनेक कवित देव देवी दूर होना चाहिये । ईसाई कोर्स पढावेगे। इसी प्रकार दो धर्मा के संस्था- धर्म का पोपडम तो नष्ट हो ही चुका है। वाइपक समान योग्यता कर मी परिस्थिति के दिल में ऐसे अधिक विधिविधानता है जिनपर अनुमार ऊँचा-नीचा कोर्स पढ़ायेंगे । यह बहुत कुछ विशेप कहा जा सके। जो व्यवहार्य बात सम्भव है कि हजरत मुहम्मद अगर दाई हजार थी वे सब तोडी जा चुकी है बल्कि उनकी प्रतिवर्ष पहिले भारत में पैदा होते तो महात्मा क्रिया हो चुकी है । धनिया को स्वर्ग में प्रवेश न महावीर और महात्मा बुद्ध से बहुत कुछ मिलते मिलने की बाल को प्रतिक्रिया थान भरकर जुनते होते। और महात्मा महावीर या महात्मा सान्नाव्यवाद के रूप में हो रही है। इन सब से बुद्ध डेढ हजार वर्ष पहिले अरब में पैदा होते तो सुधार होने की जरूरत है । और जो बाइबल में हजरत मुहम्मद स मिलत जुलते होते। इसलिये नैतिक उपदेश ह य ठीक है। महात्मा ईसा के धर्म संस्थानो की तुलना स धर्म संस्थापको की जीवन में जो अतिशया की कल्पना है वह जाना तुलना न करना चाहिये। चाहिये। अन्य धर्मों में भी यह बीमारी है वह वहा से भी जाना चाहिये। मास भक्षण आदि ___पाचवी बात यह है कि सभी धर्म अपूर्ण का जो कम प्रतिबन्ध है वह कुछ अधिक पाना हैं अथवा यह कहना चाहिये कि वे अमुक देश- चाहिये इसलाम में जो पशवलि सादिक विधान कान व्यकि के लिये पूर्ण है इसलिये किसी युग है जो उस समय अधिक हिंसा रोकने के लिये में सभी धर्म समान पालनीय नहीं हो सकते। बनाये गये ये वे आज अनुचित है . मूर्तिपूजा उनमें से अनावश्यक याने निकाल देना चाहये। का विरोध भी अब आवश्यक नहीं है य सुधार या गौण करना चाहिये। और आवश्यक बातें कर लेना चाहिये। जोड़ देना चाहिये। ये तो नमूने हैं सुधार करने की सब जगह जैसे-हिन्दू धर्म की वर्ण-व्यवस्था श्राज माफी सलत है। इसालये धर्मों की पालनीयर्ता विछन होगई है, वह मुर्ग होकर सड़ रही है, उसे सब में समान नहीं है। पर सत्र में इतनी समा. या वो मून के रूप में जाना चाहिये या नष्ट कर ना जरूर है कि देशमाल के अनुमार उनम देना चाहिये । इस समय नष्ट करना ही सम्भव सधार कर लिया जाय और उनकी नीति व्यापक है इसलिये वही करना चाहिये । वर्ण व्यवस्था और उदार बनाई जाय। नष्ट हो जाने से शूद्राधिकार की समस्या हल हो इन पाँच बातो का विचार कर लेने पर बायगी । रही लिग की शत, सो हिन्दु शास्त्रो धमों को तरतमता पर दृष्टि न जायगी और तर. में नारी के अधिकार में जो कमी है वह पूरी तमता के नाम से पैदा होनवाला मह दूर होता. करना चाहिये । जैन धर्म की साधु संस्था आज यगा। सभी धर्मों में भगवती हिंसा की छत्र अचहा या निरुपयोगी हो गई है, बाजरेसी डाया दिख पडेगी। यह दृष्टि की विफलता का एकान्त निवृत्तिमय साधु सस्था गुमप्रवृत्तिग्य ही परिणाम है कि हमें सब धर्मों में विराजमान होकर पाय बन गई है उसे नष्ट करना चाहिये भगवती हिंसा के दर्शन नहीं होते। और सापयोग के स्थान में कर्मयोग को मुख्यता हट की विफलता के कारण प्रवृत्ति निवृत्ति वेना चाहिये । बौद्ध धर्म में अहिंसा का रूप विन श्रादि का रहस्य समझ में नहीं श्रागना है। हो गया है समास-मन का विधान दूर करना अन्यथा सभी कर्मों में पाप से निचि और विश्व
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy