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________________ अलग अलग शास्त्र है। पाज का हिन्दू दर्शनशास्त्र में चाहे १-धर्म और दर्शन का कार्य और आधार कोई एक प्राचीन वैदिक दर्शन माने पर पुराने भिन्न है। धर्म का कार्य जीवन शतिनिधर्म से वह बहुत दूर होगया है। पुराने युग के या विधि विधान बनाना है। और दर्शनका कार्य पशुयज्ञ, मासभक्षण, मानव में देवत्व की अमान विश्व की व्याख्या करना है। धर्म दर्शन को प्रेरक न्यता (वैदिक युग में अाज गम ऋष्ण यादि है पर नियन्त्रक नहीं। धर्म के ध्येय की पति के क्रिया को परमात्मा कप में नहीं पूजा जाता लिये दर्शन शास्त्र है इसलिये धर्म को दर्शन का था) मूर्ति की "प्रपूजा (माज की मूर्तिपूजा भी प्रेरक कह सकते हैं पर दर्शनपर नियन्त्रण नर्क उस समय नहीं थी, अग्नि सू श्रादि की ही का रहता है धर्म का नहीं । दर्शन यह नही की उपासना की जाती थी) आदि बहुनसो वात सकता कि यह वात धर्माविरुद्ध है इसलिये न मानी छोड़ चुका हे धर्म का रूप बहुन मुब वहल गया जायगी, वह वैज्ञानिक की नरह नही कहेगा कि परमर्गत अभी भी यही है। यह बात तकविरुद्ध है इसलिये नहीं मानी इससे पना लगता है कि धर्मा पीर दर्शन जायगी। यही कारण है कि कई दर्शनाने प्रागम कदसरे के साथ बँधे हा नहीं है। एक है। को प्रमाण तक नही माग, और जिनने माना निशान से धर्म भी निकल सकता है और अधर्म उनने प्रत्यक्ष और तर्क को मुख्यता दी। धर्म में भी निकल सकता है । इसलिय दर्शन को धर्म का विवेक को स्थान होनेपर भी अन्त मे श्रद्धा को अंगन बनाना चाहिये उसके भंड से धम में भद्र आधार बनाना पड़ता है। दर्शन अन्त तक तर्क न मानना चाहिये, दर्शन की असत्यता से धर्म में की दुहाई देना रहता है। इस प्रकार दर्शन और असत्यता न मानना चाहिये। इससे धर्मो में में में काफी अन्नर है। भिन्नता का बडा कारण दूर हो जायगा। यहा २-कभी कभी सा होता है कि दर्शनशास्त्र के परस्पर विरोधी भिन्न भिन्न सिद्धानां ने पर भी दर्शन नहीलता, और कमी कमी का धारिटिस कैसा सदुपयोग दुख्योग सा होता है कि दर्शन के बदल जानेपर भी धर्म किया जासकता है इसका विवेचन किया ही बदलता TEEी बौद्धधर्म में सौत्रान्तिक जाना है। भाषिक योगाचार और माध्यमिक चार दर्शन ईश्वावाद--(पशवादो) जगत का सृष्टा गये। जिनने विश्व के पदार्थों की व्याख्या विल- या नियन्ता कोई एक आत्मा है जो पुण्य-पाप का कुल जुदे-जुदे ढंग से की। एक ने बाह्य पदार्थो फल देता है यह ईश्वर-बार है। कपिल दाताकी सत्ता मानी और एक ने नहीं मानी। कोशिश नियन्ता सृष्टा कोई एक श्रात्मा नहीं है यह अनीचारो की यह थी कि जीवन बौद्ध धर्म के अनुसार बाट है। दर्शन शास्त्र की दृष्टि से इन दा मस घने । बहुत से हिन्द एक ही तरह का धार्मिक काई एक सन्चा है। पर धर्मशास्त्र नोना को जीवन बिताते हैं, लेकिन भिन्न भिन्न दर्शनी सन्चा और दोनो को भूग कर सकता है। धर्मको मानते है। यही बात मुसलमानों के बारे में शास्त्र कोटि में श्व वाद की सचाई यह है कि है। धार्मिक जीवन में करीब करीब समानता हमारे पुरुष पार निरर्थक नहीं हैं। अगर हम होनेपर भी भिन्न भिन्न दर्शनों की उत्पत्ति उसमें जगत के कल्याण के लिये दिनरात परिश्रम करते हुई । उनमें अवैत दर्शन भी पाया और कैत है फिर भी जगत् हमारी अवहेलना करता है तो दर्शन मी बाया। इससे पता लगता है कि दर्शन माग यह गुप्त पुण्य व्यय न जायगा क्योकि के बदलजाने या भिन्न-भिन्न होनेपर भी धर्म एक जगत देखे या न देखे पर ईश्वर अवश्य देवता है । इसलिये वह अवश्य किसी न किसी रूप में
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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