SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - - - - - - - और जो रहे भी, वे परस्पर सेवा सहानुभूति से का ठीक ठीक ज्ञान हाजाय और धर्मशास्त्र के मालूम भी न पडें । बीमारी का कप्ट इतना नहीं सिरपर लदा हुआ वोम दूर होजाय तो धर्मों में बटकता जितना अकेले पड़े पड़े तड़पने का। इतना भेट ही न रहे । धर्मशास्त्र पर लदे हुए इस मनुध दुसरो पर जो अपना वोझ लादता है चोझ से बड़ी भारी हानि हुई है। धर्मों में अन्तर अत्याचार करता है सेवा नहीं देता यही कष्ट सब तो बढ़ ही गया है साथ ही इन विषयो का से अधिक है सभी वर्स इसको हटाने का प्रयल विकास भी रुक गया है। धर्मशास्त्र के ऊपर करते हैं इसलिये धर्मशास्त्र का काम सिनितिक श्रद्धा रखना तो जरूरी था और इससे लाभ भी नियम, उनकं पालन का उपाय, उनके न पालने, था पर उसमें आये हुए सभी विषयों पर श्रद्धा पालने से होनेवाले हानि लाम बताता है। अगर रखने से सभी विषयों में मनुष्य स्थिर हो गया । सभी धर्मशास्त्र इतना ही काम करते तो उनमे सदाचार आदि के नियम इतने परिवर्तनशील जो परस्पर अन्नर है वह रुपये में वाह आना या विकासशील नही होते जितने भौतिक विज्ञान घटनाता, पर आज धर्मशास्त्र में इतिहास भागेल आदि । समचार मे मनुष्य हजार वर्ष पहिले के ज्योतिप पदार्थविनान दर्शन आदि नाना शास्त्र मनुष्य से बढ़ा या बहुत बड़ा नहीं है कदाचित मिल गये है इसलिये एक धर्म दूसरे धर्म से जुदा घट गया है पर भौतिक विज्ञान आदि में कई गुणी तरक्की हुई है। अब अगर धर्मशास्त्र के मोल्म होने लगा है। साथ मौतिक विज्ञान आदि भी चलं तो जगत • अगर तुम से कोई पूछे-मे और दो कितने की बड़ी भारी हानि हो, और धामिक समाल होते हैं ? तुम कहोगे चार। पितर पूछे हिन्दू धर्म प्रगति के मार्ग में वड़ा भारी अड़ेगा वन जाय, के अनुसार कितने होते हैं इस्लाम के अनुसार जैसा कि वह वनता रहा है और बहुत जगह फितने होते है जैनधर्म के अनुसार कितने होते हैं आज भी बना है। इसलिये सब से पहिली बात ईसाई धर्म के अनुसार कितने होते हैं तो तुम यह है कि धर्मशास्त्र मे से दर्शन इतिहास भूगोल कहोगे-यह क्या मत्राल है १ धर्मो से इसका आदि विषय अलग कर दिय बाँच। धर्मशास्त्र क्या सन्बन्ध, ग्रह तो गणित का सवाल है? की मर्यात का ध्यान रक्खा जाय फिर धर्मों का इसी प्रकार तुमसे कोई पूछे कलकत्ता से धम्बई अन्तर बहुत मिट जायगा। कितनी दूर है शिया कितना बड़ा है और फिर प्रश्न-धर्मशास्त्र में ये विपर आये क्यों ? उनका सर हिन्दू मुसलमान आदि धर्मो की उत्तर-पुगने समय में शिनण का इतना अपेक्षा चाहे तो उससे भी यही कहना होगा कि हागाकबन्ध नहीं था। धर्मगुरु के पास ही हरएक "ह वर्मशास्त्र का सवाल नही हे भूगोल का विषय की शिक्षा लेना पहती थी। धर्मगुरुओं पर , मवाल हैं। इसी तरह सूत्री चन्द्र तारे पृथ्वी श्रादि अचल श्रद्धा होने से हरक विषय पर अचल मवाल [भूगोल यगोल ] युग युनान्तर के अट्ठा होने लगी • गुरु लोग भी शिक्षण के सुभाते मचान ( उनिहास ) इन्या चा पदार्थों के और इलिये धर्मशास्त्र में ही हरएक विषय खींचतान भाम-समान्म. लोक-परलोक श्रादि के सवाल पर भरने लगे इस कार चनशान सर्व विद्या(विधान और दर्गन ) बर्मशास्त्र के विषय नहीं भण्डार बन गये । शिक्षण की घटस तो उस पर उन्हीं गानों को ले धर्मशास्त्रों में इतना जमाने में अवश्य सुभीता हुआ पर इन विद्यामा "विवचन और कल्पनाओं के द्वागयरे विकास स्कने और धर्म-धर्म में मंद पड़ने का महानने मारा उनना मनमेंट रहा है कि नुकसान भी काफी हुआ। मा मानता है कि एक से दूसरे पर्न सं घमशास्त्र में इन विषयों के आने का दुसग शनी मनस्ता। अगर धर्मशान्त्र स्थान का धर्म के जपा द्वा जमाने का और
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy