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घमिका
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या बुरा बनाने में है। हम अच्छे से अच्छे धर्म महान बनता यह पारिस्थितिक महत्ता है। इस 'को चुनें, जिससे हमारा जीवन अच्छा बने, पर विचार से धर्मों के द्वन्द दूर होते हैं, घमण्ड
अपने गौरव के लिये दुनिया के सामने अपने घटता है और युगबाह्य वस्तु मे अन्धश्रद्धा रखने धर्म के गीत न गायें, क्योंकि धर्म जितना अच्छा की भी जरूरत नहीं होती। होगा हमारे गौरव को उतना ही धक्का लगेगा। २-सामूहिक कृतज्ञता का मतलब यह है अधिक जी मे कम कमाई करने वाले की अपेक्षा कि हमारा जो आज विकास हुआ है उसके मूल कम पूंजी में अधिक कमाई करनेवाले का गौरव मे पूर्वजों की काफी पू'जी है इसलिये आज के अधिक है। इस प्रकार गौरव विवेक रक्खा जाय युग को पिछले युग का कृतज्ञ होना चाहिये आज तो धार्मिक द्वन्द दूर होजायें।
के महामानव को पहिले के महामानव का कृतज्ञ तरतमता विवेक-धर्मों की न्यूनाधिकता होना चाहिये। इस सामूहिक कृतज्ञता के कारण या अविकसितता का ठीक ठीक विचार करना भी हमे पहिले महामानवो का आदर करना तरतमता विवेक है। इसके पाजाने से धर्मों के चाहिये । द्वन्द्व शान्त होजाते हैं।
३- बन्धु-पूज्य-समादर का मतलब उस तरतमता का भाव दो तरह का होता है। व्यावहारिकत्ता से है जो हम पड़ोसियों के गुरुएक तो वैकासिक दूसरा भ्रमजन्य। विकास तर. जनो के विषय में रखते हैं। यदि हम किसी को तमता (लंतीम जीपो) का भाव बुरी बात नहीं मित्र कहते हैं तो हमारा कर्तव्य होजाता है कि ! है। मानव समाज-उठताबैठता-विकसित होता उसके मातापिता का यथोचित आदर करें। जो जारहा है, इसलिये मनुष्य की धार्मिक भावना भी हमारे बन्धु के लिये पूज्य है वह हमारे लिये काफी विकसित होती जारही है। देशकाल का असर आदरणीय है। यही बन्धु-पूज्य-समादर है। धर्म " उसपर पड़ता है इसलिये विकास में कुछ अन्तर के विषय मे भी हमें इसी नीति से काम लेना भी होता है। पर इससे द्वन्द्व नहीं होता, निन्दा चाहिये। मानलो हजरत मूसा का जीवन आज अपमान आदि का साव नहीं आता। प्राचीन हमारे लिये आदर्श नहीं है पर वे यहूदियों के काल का महात्मा या उसका सन्देश या सन्देश
गुरुजन हैं इसलिये यहूदियों के साथ बन्धुता | देने का रूप यदि श्राज के समान समुन्नत नहीं है
प्रदर्शन करने के लिये हमें हजरत मूसा का आदर , तो भी तीन कारणों से हमें उसका सन्मान करना
करना चाहिये । यदि हम किसी यहूदी मित्र के'। चाहिये । १. पारिस्थितिक महत्ता ( लजिज्ज बीगो) २ सार्वजनिक कृतज्ञता (पुमपे भत्त
बाप का गुणदोप,का विशेष विचार किये विना । जेवो ) ३ बन्धुपूज्यसभादर ( मगपुजमोनो)
आदर कर सकते हैं तो समस्त यहदियों के लिये
जो पिता के समान हैं उनका आदर क्यो नहीं कर, १-पारिस्थितिक महत्ता का मतलब यह है
सकते। कि जो व्यक्ति या वस्तु अपने देशकाल में महान है उसकी महत्ता को स्वीकार करना आदर करना, प्रभ-यदि बन्धुता के लिये दूसरा के देवों भले ही आज की अपेक्षा वह भहन्ता न मालूम या गुरुआ का आदर करना कर्तव्य है तब तो। हो। जो अपने जमाने में अपने जमाने के लोगो बड़ी परेशानी हो जायगी। हमें उनका भी आदर. से आगे बढ़ सका वह आज के साधन पाकर करना पडेगा जिनको हम पाप समझते हैं। किसी। पान के जमाने के लोगों से भी आगे बढ़ता, जो शात मनुष्य के साथ बन्धुता रखनी है तो बकरों धर्म उस जमाने में उतना अच्छा बनसका वह का बलिदान लेनेवाली काली का आदर करना. आज के साधन पाकर प्राज्ञ की दृष्टि से भी भी हमारा कर्तव्य हो जायगा । बहुत से चालाक