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रंत रहना चाहिये। मनुष्य का हश्य जत्र नक बल आदि में भी यही बात है। पर ईश्वर और धर्मती से शून्य नहीं होसकता तब तक उसे धर्स में तो तुलना करने की जरूरत ही नहीं है अन्हा तीर्थ देने का प्रयत्न करना चाहिये, नहीं अन्धश्रद्धा के अन्धेरे के कारण दूसरा दिखता ही तो वह सराब से खराब संपदाय को अपना नहीं फिर तुलना न्या ? तुलना तो सिर्फ कल्पना लेगा। इसलिये कुपथ्य के समान दुरुपयोग ही से की जानी है कि हम अच्छे सब खराब, क्योंकि रोकना चाहिये।
हस हम हैं। इस प्रकार महत्वानन्द की अनुचित प्रश्न-दुरुपयोग हरएक चीज का होता है लालसा के कारण जो हमारे दिल मे शैतान घुसा यह ठीक है, पर धर्म का दुरुपयोग अधिक से है वह ईश्वर और धर्म की ओट मे ताण्डव कर अधिक होता है। यन, बल, सौन्दर्य, आदि के रहा है । वास्तव म यह शैतान (पाप) का उपअहकार को अपना धर्म का अहंकार प्रवल होता है । झगडे आदि भी धर्म के लिये बहुत होते है प्रश्न-माना कि धार्मिक द्वन्दी में मुख्य इन सब का असली कारण क्या है ? अपराध शैतान का है पर धर्म भी उसमें सहायक ___उत्तर-धर्म तो जगन मे शान्ति प्रेम, और है। धर्मों मे तरतमता है यह आप मानते हैं तत्र
आनन्द्र ही फैलाता रहा है । परन्तु मनुष्य एक जिसको अच्छा धर्म मिला है वह उसका गौरव जानवर है, बुद्धि अधिक होने से इसमें पाप क्यों न रक्खे ? क्या अच्छे को अच्छा समझना करने की
भी शैतानियत है ? यदि नहीं तो अच्छे चुरे का परयने की शक्ति अधिक आगई है। अहंकार इसमें
" द्वन्द होगा ही। इस प्रकार यदि धर्म है तो उनमें सब से अधिक है । महत्वानन्द के लिये यह सत्र
- तरतमना है और तरतमता है तो द्वन्द है, तब कुर छोड़ने को तैयार होजाता है। पर हरएक
इसका क्या उपाय श्रादमी को यह आनन्द पर्याप्त मात्रा में नहीं
उत्तर- दो उपाय है १-गौरव विवेक (पंजो मिल सकता जब कि लालसा दीव रहती है इस अंको) २-तरतमता विवेक (जीपो को) लिये मनुप्प अनुचित कल्पनाओ से इस लालसा गौरव विवेक मनुष्य इस बात का अमिका सन्तुष्ट करने की चेन करता है उसी का फल मान करता है कि हमारा धर्म बड़ा अच्छा। पर है यम-मद धन, जन और वल श्रादि का सह अगर धर्म अच्छा होनपर भी हम उसके द्वारा नमो अनुरण है न स्थिर । अाज धन है कल अच्छे नहीं बने. तो धर्म जितना अच्छा होगा नही है, आज बल है कल बीमारी बुढापा प्रादि हमारी उतनी ही अधिक हीनता साबित होगी। मं नहीं है इस प्रशर इनके मदी से मनुष्य को किसी आदमी में अगर ईमानदारी सेवकता परोमन्नोप नहीं होना । तब यह धर्म और ईधर पकार ज्ञान प्रादि हम से अधिक हो और हम नामपर मत करना है। हमारा धर्म सब से अन्ना. ऋहे कि उसका यमे खराब है और हमारा धर्म Pमाग देव मव से अन्या श्रादि । वम और देव अच्छा है तो इसका अर्थ यह होगा कि वह धीगर नहीं होते. बुढे नहीं होते और छिनते मान्मी हमसे अधिक लायक है कि खराव धर्म भी नहीं अयान इनका नाम नहीं छिनता (अर्थी का सहारा लेकर भी उसने हमसे अच्छा जीवन मेनोन ग्रहं मारियों के पाम ये पटकते भी बनाया और हम बड़े नालायक हैं कि बच्चा धर्म नही है फिर मिलगे क्या है इसलिये इनका पार भी घराब बर्नबाले से अच्छा जीवन न
भिमान मा बना रहता है और तुलना में बना पाये इमार गौरव-विवेक से पता पुल भी ना होना। धन में नो लम्बपति का लगेगा किमाग गौरव अपने मं अच्छे या HP पनि पागे सुराण मोजता है. बुरे होने में नहीं है किन्तु अपने जीवन को अन्दा