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________________ सत्यामृत - - - -- - - -- धून लोग भोले लोगो को वहकाकर गुरु बन जाते परिस्थिति बदल जाने पर उपयोगी वनजायें जो है अगर उन भोले लोगों का आदर करना हो तो आज उपयोगी है वे कमी उपोपयोगी बन साँय। उन धूर्त गुरुओ का भी आदर करना चाहिये। मानव-समाज के विकास के कारण जो आज के इस प्रकार हमें देव-सूढता गुरु-मूढता आदि मूढ़- लिये कस उपयोगी रहगये हैं वे ईषदुपयोगी हैं। ताओं का शिकार हो जाना पड़ेगा। जैसे हजरत मूसा आदि। इनमें से उपयोगी और उत्तर-इस प्रकार के अपवाद धर्म में ही उपोपयोगी तो पूर्णरूप से पूजनीय हैं अर्थात् इंप्ट. नही साधारण लोक व्यवहार में भी उपस्थित देव की तरह बन्दनीय हैं। ईपदुपयोगी वन्धुहोते हैं। हम पड़ौसी के पिता को सम्मान की पूच्य-समादर आदि की दृष्टि से आदरणीय हैं। दृष्टि से देखते हैं इस साधारण नीति के रहते हुए ३-कुछ गुणदेव और व्यक्तिदेव अनुपयोगी भी यदि पड़ोसी का पिता बदमाश हो, क्रूर हो भी होते हैं उन्हें कुदेव कहना चाहिये । भूत-पिशाच और अत्याचारी हो तो न्याय के संरक्षण के लिये श्रादि कल्पित देव, देव रूप में माने गये सर्प हम उसका निगदर भी करते हैं पाप का आदर , नहीं करते। धर्म के विषय में भी हमे इस नीति र आदि क्रूर जन्तु, शनैश्चर यम आदि भयंकर से काम लेना चाहिये। फिर भी इसमें निम्नलिखित सूचनाओं का ध्यान रखना चाहिये। पूजा न करना चाहिये। १-गुणदेवों का तिरस्कार न करना चाहिये शंका महादेव या शिव की उपासना सिफे उनके दुरुपयोग दुरुपासना आदि का तिर करना चाहिये या नहीं ? वह तो संहारक देव होने स्कार करना चाहिये। जैसे काली. जगदम्बा श्रादि स पर वह। नामों से प्रसिद्ध शक्ति देवी को शक्ति नामक गुण समाधान-मय से उपासना न करता की मूर्ति समझकर उसका सन्सान ही करना चाहिये। शिव पाप संहारक है इसलिये क्सर चाहिये। परन्तु शक्ति का जो विकराल रूप है नहीं है इसलिये गुणदेवों में शिव की गिनती है। पशु-वलि श्राहि जो उसकी उपासना का बुरा अथवा सत्य और अहिंसा में ही हम शिव-शिवा । तरीका है उसका विरोध करना चाहिये । का दर्शन कर सकते हैं। जगकल्याण के अग की हाँ, विरोध में भी दूसरों को समझाने की भावना से किसी की भी उपासना की जासकती है। हो उनका तिरस्कार करने की नहीं : समभावी को शंका गोमाता कहना उचित है या "गुण्टेवा का सन्मान करते हुए देव मूढता का कोई रूप न आने देना चाहिये। अनुचित, गाय तो एक जानवर है। २ वर्तमान की दृष्टि से व्यक्तिदेवा की समाधान-गाथ के उपकार काफी हैं कृत्तमीन श्रेणियाँ हैं क-उपयोगी ( उश) उपोपयोगी जता की दृष्टि से गोमाता कहा जाय तो कोई बुरा १ (फश) ईपदुपयोगी (वेश) जो आज के लिये नहीं है । गो माता शब्द मे गो जाति के विषय में कृतज्ञता है जोकि उचित है । वास्तव में उसे कोई ६ पूर्ण उपयोगी है उन्हें उपयोगी कहना चाहिये, ) परन्तु जो अपने समय में पूर्ण उपयोगी थे किन्तु देवी नहीं मानता। नहीं तो लोग उसे बाँध कर आज परिस्थिति बदल जाने से कुछ कम उपयोगी के साथ जानवर सरीखा व्यवहार करके उस क्यों रखते और मारते पीटने भी क्यों ? जानवर हांगवे है, जिनके सन्देश में थोडे बहुत परिवर्तन जानि के उपचारों के विषय में कृतज्ञता प्रकाशित को प्रायश्यकता है वे उपोपयोगी हैं। वैसे गम, काने के लिये शब्दस्तुति करना अनुचित नहीं है। कृष्ण, महावीर, बुद्ध. ईसा मुहम्मद आदि। मा ४-3 के विषय में शिष्टाचार का उतना भी होसकता है कि जो भाल उपोपयोगी है वे पानन काना चाहिये जितना पड़ोसी के गुरु के
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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