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के धर्मों की अपेक्षा वह वर्तमान युगधर्म की फिर भी वे युग के अनुरूप जीवन की अधिकारा परीक्षा अधिक करता है। क्योंकि भूतकाल के मुख्य मुख्य समस्याओ को नहीं सुलझा पाते । धर्मों से वह मुख्य रूप में प्रेरणा लेता है, उनकी एक तरह से वे अश धर्म (अंश भन्तो) कहने थोडी बहुत बातें आम तौरपर युगबाह्य समझली लायक होते है। धर्म समभावी उनकी प्रशंसा जाती है इसलिये उन्हें अस्वीकार करके भी उनके करता है पर अनुयायी नहीं बनता क्योकि वे विपय में आत्मीयता का भाव रक्वा जासकता है। पूर्ण नहीं है। किन्तु वर्तमान में जो धर्म बनरहे हैं उनके विषय -किसी एक धर्म के भीतर जो किसी मे देशकाल के अन्तर की दुहाई नहीं दी जा एकाध बात को लेकर कुछ सुधार किया जाता है सकती है इसलिये टोटल मिलाकर जो सर्वोत्तम और उस सुधार का भी एक सम्प्रदाय बनजाता होता है उसे वह स्वीकार कर लेता है। हां। है, समभावी उसकी प्रशंसा करता है पर उसे अन्ध अनुकरण वह किसी का नहीं करता, यथा- अलग तीर्थ नहीं मानता इसलिये उसकी प्रशंसा शक्ति समझबूझकर ही वह स्वीकार करता है, एक धर्म की प्रशंसा नहीं होती । मूलधर्म जिस
और जिसे वह स्वीकार नहीं करता उसमे अगर जिस श्रेणी का होता है करीब करीब उसी श्रेणी कोई यात विशेष अच्छी मालूम होती है तो उस में उसकी यह नई शाखा मानी जाती है। अधिकी प्रशंसा करने और अपनाने में नहीं हिच- कतर इस प्रकार के सुधारकों का यह दावा रहता कता है।
है और कोशिश रहती है कि मूलधर्म के ऊपर सत्यसमाज को आज युगधर्म (हूनोमन्तो) चढ़े हुए विकारो को वे दूर करते हैं, उसकी सफाई कहा जासकता है। युगधर्म को युवाधर्म (यंग- करते हैं उसको धूल झाड़ते हैं । इसप्रकार के सुधा. भन्तो) भी कहा जासकता है।
रकों का भी एक सम्प्रदाय मूलधर्म की शाखा ३-किसी पुराने धर्म का कोई बिलकुल रूप में बनाता है। जैसे ईसाइयों का प्रोटेस्टेंट कायाकल्प करदे, आज के युग के अनुकूल बनादे, सम्प्रदाय । फटे कपड़े में थेगरा लगाने के समान आधुनिक विज्ञान के साथ उसका सम्बन्ध स्थापित । इनका कुछ उपयोग तो है फिर भी इससे युगधर्म करदे, खराबियाँ हटा दे त्रुटियों पूरी करदे, एक का निर्माण नहीं होता 1 इसे धर्म को धोने वाला तरह से युगधमे बनाते, पर नाम पुराना रहने द, सम्प्रदाय ( भन्तोधोव फसरो) कहना चाहिये। पारिभाषिक शब्द और व्यक्ति पुराने रहने दे, तो । धर्मसमभावी धर्म के इस रूप को पुराने रूप की
' ६-एक स्वतन्त्र विचारक व्यक्ति अपने अपेक्षा अधिक मान्यता देगा।
स्वतन्त्र विचारों से युग की मुख्य मुख्य समस्याओं
को सुलझाने की कोशिश करता है, जनहित की इसे कायाकल्पतीर्थ (फूलिज भन्तो ) कहना।
" भावना भी रखता है, पर मुख्य समस्याओं को चाहिये। सत्यसमाज की स्थापना के पहिले जैन
सुलझाने की राह नहीं बता पाता बल्कि उलझा धर्म मीमांसा लिखकर जैनधर्म का ऐसा ही काया
देता है। उसके विचारों पर खड़े सम्प्रदाय को कल्प किया गया था।
भ्रम सन्भेदाय (मूह फरूरो) कहते हैं। धर्मयह युगधर्म की बराबरी नही कर सकता समभावी उसे मानने से इनकार कर देता है। फिर भी काफी अंशों में उसका काम देसकता है। फिर भी एकाध बान जो उसमे अच्छी मालूम
४-कई ऐसे सम्प्रदाय चल पडते है जो होती है उसकी प्रशंसा करता है, प्रवर्तक व्यक्ति जीवन की एक दो समस्याओं पर कुछ ठीक . की भावना को भी उचित कद्र करता है।.. प्रकाश डालते हैं, कुछ संशोधन भी करते हैं, .. ७-जब मानवता के विकास का प्रारम्भ ही। उनके प्रवर्तको में स्वतन्त्र विचारकता होती है, हुआ था, धर्मतीर्थ उबड़-खाबड शक्ल धारण कर
रका का