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________________ सत्यामृत - - ४-स्वत्वमोह विजय (एमो मुहो जयो) उत्तर पक्ष बनाकर विलकुल उल्टी बात की घोपणा धर्मसमभावी को अपने धर्म का मोह (मूढतापूर्ण करना आदि अनेक तरह से वह इतिहास की पक्षपात ) नहीं रहता । इसलिये वह नि:पक्ष इत्या करना है। इतिहास को ठीक रूप में समझाने विचार कर सकता है। धर्मतीर्थ का घमण्ड नहीं के लिये धर्मसमभावी होना आवश्यक है। आता, झूठी वकालत करने की वृत्ति नहीं रहती, ६- कृतघ्नतापरिहार (भत्तनोसो लोपो) सत्र जगह से सत्य खींचने की वृत्ति पैदा होने से धर्मसमभाव की हीनता से मनुष्य कृतघ्नता का उसके पास सत्य का भण्डार अधिक से अधिक परिचय देता है। जिन पूर्वजों की सेवाओं का होसकता है। ये सब पर्याप्त लाभ हैं। स्वत्वमोही उसने या उसकी पीढ़ी ने काफी लाभ उठाया एक तरह का निकटान्ध होजाता है। वह अपनेपन होता है उनके उपकार को यह भूल जाता है । के कारण अपने पास के बडे बडे टोपों को नहीं हिन्द के मुसलमान इसाई आदि धर्मान्तर करने देखता और दूसरो क छोटे छोटे दोषी को बड़े पर अपने पूर्वता के प्रति कृतन होगये, सहावीर परिमाण में देखता है। साम्प्रदायिक दृष्टि से और बुद्ध ने इस देश का अनेक अंशो मे कायाचर्चा या वाद करने वाले, या इस दृष्टि से कल्प लिया पर जो उनकं धर्म के अनुयायी नहीं साहित्य लिखने वाले इस निकटान्धता का खूब बने वे उन्हे भूल गये या निन्दक होगये, यही परिचय देते हैं। हाल श्रमणा का वैदिक ऋपिमहर्षियों के बारे में ५-इतिहास प्रकाश (लुलसो पिमो) धर्म- हुआ। हरएक धर्मवाले का यही हाल होता है। समभावी इतिहास को सत्य और निष्पक्ष दृष्टि धर्मसमभाव के बिना वह कृतज नहीं रहपाता। से समझ सकता है। कि अतीतकाल मे मानव. जो लोग हर धर्म के विरोधी होते हैं वे भी जीवन के भीतर धर्मों ने काफी परिवर्तन किये हैं इसी कृतघ्नता की राह चलते हैं। वे यह नही उनके निमित्त से अनेक महत्वपूर्ण घटनाएँ घटी सोचते कि पुगने लोगों के बनाये वर्म या उनकी है, उन सब को ठीक ठीक समझने के लिये धर्म- सेवाएं भले ही आज मृत या युगबाह्य होने से सममावी होना जरूरी है। जो लोग धर्मों को निरुपयोगी हों पर मानव समाज के विकास में घृणा की दृष्टि से ही देखते हैं एक तरह की वेव- उनने सीढी का काम किया है। रेल के एजिन कूफी समझते हैं वे इतिहास में धर्मों के कर्तृत्व का आविष्कार करने वाला वैज्ञानिक यदि अाज का, और धर्मों ने जो मानव समाल को प्रगति के समान शक्तिशाली ओर द्र तगामी एजिन नहीं दी है उसका ठीक ठीक ज्ञान नहीं कर सकते । जो बना सका तो उसका उपकार भूलने लायक नहीं किसी एक धर्म के पक्ष से रंगे हैं उनको इतिहास होजाता, और न हमे उसके मजाक उडाने का का ठीक ठीक ज्ञान और भी दुर्लभ है। वे अपने अधिकार मिलता है। धर्म से सम्बन्ध रखनेवाली छोटी छोटी घटनाको धर्मतीर्थ एक समय की क्रान्ति है। निःसको इतना महत्व देंगे मानों ब्रह्माड उन्हीं से लटक, सन्देह किसी भी क्रान्ति का रूप उतना ही विकरहा है और दूसरे धर्मों के द्वारा किये गये बड़े सित होता है जितना उस जमाने के भादमी बडे परिवर्तनों पर उनका ध्यान ही नहीं जायगा। विकसित होते हैं, इसलिये होसकता है कि वह धर्मसमभाव हीन व्यक्ति जय इतिहासज्ञ बन बैठता श्राज के लिये एक मामूली बात हो और अपना है तब वह इतिहास की ऐसी विडम्बना करता है काम करके वह निर्जीव होगई हो और उसके कि इतिहास का मामूली विद्यार्थी भी हॅससकता वाद नये तीकरों ने फिर क्रान्ति की हो, पर 'है। घटनाओं को तोडना मरोडना, झूठी घटनाएँ इसी कारण मृतक्रान्ति के उपकार को भूलना या बनाना, उत्तर पन को पूर्व पक्ष या पूर्वपक्ष को उसकी निन्दा करना उचित नहीं। पिछले काति
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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