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________________ - - - - उममें दूसरी को असुविधा हो तो चिढ़ना न प्रकार का आग्रह भी लोक-मूढ़ता है। क्योंकि चाहिये । इसी प्रकार खानपान मे रुचि, स्वास्थ्य, बाप दाद हमारे उपकारी हो सकते है पर हमसे स्वच्छता, निपिता आदि का विचार करना अधिक विद्वान थे ऐसा कोई नियम नहीं है। पर चाहियं इसी प्रकार हरएक लोकाचार को बुद्धि. इससे भी अधिक महत्व की बात तो यह है कि मंगत बनाकर पालन करना चाहिये। वाप दादे विद्वान भी हों पर उनका कार्य उनके प्रश्न-लोकाचार को बुद्धि-सगत बनाया समय के लिये ही उपयोगी हो सकता है आज जाय तो बड़ी परेशानी जायगी। आज दिल के लिये आज का युग देखना चाहिये। आज के चाला योपीय पोषाक पहिन ली, कल लँगोटी रिवाज किसी न किसी दिन नये सुधार थे. उन तगाली, परसो मारवाडी बन गये, किसी दिन पुराने सुधारको ने जब अपने समय के अनुसार महागष्ट्री बन गये, किसी दिन पंचायो बन गये। रिवाज बनाते समय अपने पुरखो की पर्वाह नही इस नरह का बहुपियापन क्या अच्छा है ? की तो उनकी दहाई देकर हमे क्यो करना चाहिये। प्राधिर बादत भी कोई चीज है। उसके साथ प्रश्न-बहुत से लोकाचार दिसे हैं जिनके बलात्कार करना कहां तक उचित है ? लाम शीघ्र नहीं मालूम होते पर उनसे लाम है ___ उत्तर-लोक-मूढता के त्याग के लिय बहु- रक लोकाचार के विषय में छानबीन मपिया बनने की जरूरत नहीं है न वाढत के करने की एक आदमी को फुरसत भी नहीं साथ बलात्कार करने की जरूरत है। जरूरत रहती इसलिय बहत स लोकाचारो का बिना FIक दिया का गुलामा छाडा जाय विचारे पालन करना पड़ता है। इसमें लाभ हो और मकारणक परिवर्तन के लिये तैयार रहा तो ठीक ही है, नही तो हानि तो कुछ है ही नहीं। आय । अाज हमारे पास ऐसा नहीं है, ठ३ भी एसी हालत में इसे लाकमढता कैसे कह सकते हैं। नहीं लगती तय झाट न पहिनता तो शछा ही है चार ही ओढ लिया तो क्या बुराई है ? उत्त -लोकाचार का पालन करना लोक'अधिक भूपणां से शरीर मलिन रहता है अमु मूढता नहीं है पर विवेक छोडकर हानिकर लोका. चार का पालन करना लोकमूढ़ता है। जिस विषय विद्यााती तो ग्विाज होने पर भी आभूषण पाविचार नहीं किया है उसका पक्षपात न होना म पहिन या कम पहिनं तो अन्धा ही है। शरीर चाहिय और लोकाचार के टोपों पर जानबूझकर की जन सी हा वैसी पोशाक कर लेना उपना भी न करना चाहिये। श्रवसा न मिलने गारिये । एक जगाने मे ब्राम्हणवर्ण के निर्वाह स विशेष विचार न किया हो पर इतना विचार निय उन्म मृत्यु के अवसर पर दान दक्षिणा तो आवश्यक है कि इस लोकाचार से सत्य और भाजन 'पानि उचित था आज अावश्यकता नहीं अहिंसा में बाधा ता नहीं पडती । लौकिक हानि म उमरदि का किसी न किसी रूप मे पालन दसग की प्रसन्नता के लिये भले ही सहन करती ना माहिग यह गुलामी क्या? नही पाउन जान पर वह हानि मी न होना चाहिये जिससे गान मां यादत धुरी (स्वपर-टु सकारक) समाज दसरं लांगा को भी हानि का शिकार मा गायि पिर 'पाढत के अनुमार कार्य होना पडे । जहा तक बने लोकाचार के संशोधन रम्न में वोट बुगः नही है। अगर जादन बुरी का प्रयत्न तो होते ही रहना चाहिये। नापी र म त्याग रन सा प्रयत्न प्रश्न-मनुप्यता की उत्पत्ति का कारण "TITI शाय। चुद्धि भले ही कोपा उमकी म्भिग्ना का कारण र गार या मर्यनने मम्मा । म मा नहिन बेटी को पवित्रता की HTTPin artT गाय'इम टिम देन है इसका कारण हमारे बौद्धिक
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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