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________________ सत्यत ३ माता पिता अगर असली न हो तो भी दव-मूढ़ता पाँच तरह की है १ देव-भ्रम (लोम. उसमे कोई विशेष हानि नहीं है पर गुरु शास्त्र मूहो) देव को देव मानना, २ रूप-भ्रम (अम्मो आदि के विषय में एसी उपेक्षा नहीं की जा भूहो) देव का स्वरूप विकृत या असत्य कल्पित सकती। उनके असत्य होने से जीवन नही करना ३ कुमचना (नियाचो) अनुचिन माग मरुना है। पेश करना ४ दुरुपासना (रुपूजो) बुरी तरह पूजा करना ५ परनिना (युमधुपो ) एक देव की शान्त्र की परीक्षा में मरस्वती माता का पताक लिये दूसरे देव की निन्दा करना। अपमान न समझना चाहिये । सरस्वती तो सत्य -भय से, मोह से और अन्ध श्रद्धा से मयी है और शास्त्र के नाम पर तो सत्य-असत्य किसी को देव मानना देवनम है। जैसे भून सभी चलता है, उसी परीक्षा करकं सत्य को पिशाच शीतला आदि को देव मानना उनकी खोज निकालना सरस्वती की खोज करना है पूजा करना । पहिले तो भूत पिशाच आदि उसकी परीक्षा करके उसका अपमान नहीं । कल्पनारूप हैं। एक ताह के शारीरिक विकारों मत्य की खोज करना भगवान सत्य का अपमान र माले हैं पार ये हो नहीं सन्मान है। परीना को अपमान नहीं सम- मो. तो भी इन्हें देव मानना देवभ्रम है । क्योकि झना चाहिये । इसलिये शास्त्र परीना अवश्य ये आततायी है.आदर्श नही अगर ये उपद्रव कर करना चाहिये। हा, जहा अपना बुद्धि वैभव तो इन्हें दंड देना चाहिये । दंड नहीं दे सकते तो काम न दे वहा विश्वास से काम ले फिर भी उसका यह मतलब नहीं है कि इन्हें देव माना जाय। इतना तो समझ ही लेना चाहिये कि वह प्रमाण- शनैश्चर प्रादि नही को दव मानना भी देवरम विरुद्ध तो नहीं है, देशकाल का देखते हुए सम्भव है। अनन्त आकाश में घूमनेवाले ये भोतिक पिड या नहीं जब विरोव समझ में श्राजाय नय कोई प्राणी नहीं हैं कि उन्हें देव माना जाय। माहवा श्रमत्य को अपनाये न रहे। उनकी गतिका जीवन पर ऐसा प्रभाव नहीं पड़ता जैसा कि लोग समझते है । वायुमण्डल आदि इस प्रकार शास्त्रों को परीक्षा करके शास्त्र पर कोई प्रभाव पडता भी हो, तो भी इन्हें देव मूढना का त्याग करना चाहिय। मानने की जरूरत नहीं है 1 अगर इनका कोई बढ़ना-( जीमूना ) जीवन का आदर्श दुष्प्रभाव होता हो तो उससे बचने के लिये हमे देव है। जीवन क श्रादरूप में अब हम किसी कोई चिकित्सा करना चाहिये, इनकी पूजा करना और इन्हें खुश करने की कल्पना से इनके दुष्प्रनन्य को अपनाने हैं नव वह गुणदर कहलाता भाव से बचन को श्रागा करना मृढता है । इस २. किमो व्यक्ति को अपनाते हैं तब उमे याक का अपनाते है नर उमें मूढता से बड़ी भारी हानि यह है कि मनुष्य किस रात है। मध अहिंसा आदि गणदेव योग्य चिकित्सा से वहित हो जाता है और गम, कृष्ण, महावीर. बुद्ध इमा मुहम्मद, अयोग्य चिकित्मा में अपव्यय करता है इस उरथुम्न मागम भाटि ब्यमिदेव हैं। गुणदेवों को प्रकार दुहगे हानि उठाता है। जीवन में उतारना ब्यामि देवा के जीवन में शिक्षा प्रश्न-ईश्वर भी एक कल्पना है तो क्या लेसर उनसचिन 'अनुकरण करना, उनके उस मानना भी देवरम समझा जाय ? विषय में अपनी भरि बनाने क लिये श्रादा. उत्तर-भय मे, मोह से और पन्ध श्रद्धा पूना, मगर मनुति करना या, सब दया की संवा मानना देवभ्रम है पर विचारपूर्वक मामा मामी देवोपासना नो पाता ईभर मानना और किमी तरह की अनुचित भूनना का परिणय नहीं देता। प्रशानी रमना देवभम नहीं है। उगकी
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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