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________________ - - - - ar women प्रश्न-परीक्षा करके ही अगर शाख माने उत्तर-दुनिया दुरंगी है, भीतर कुछ और जाँय तो शास्त्र की उपयोगिता ही नष्ट हो जायगी बाहर कुछ, इसलिये परीक्षक बने बिना मनुष्य शास्त्र की परीक्षा का अर्थ है उसमे लिखे हुए की गुजर नहीं हो सकती ? पर मनुष्य जन्म से विषयों की परीक्षा । जिज्ञासु उनकी परीक्षा कैसे विश्वासी होता है, दूसरों से वञ्चित होने करे ? जाने तो परीक्षा करे, परीक्षा करे तो जाने, पर वह परीक्षक बनना सीखता है । इस प्रकार के अनुभव ज्यो ज्यो बढ़ते फिर पहिले क्या हो ? जाते हैं त्यो त्यो मनुष्य परीक्षक बनता , उत्तर--यहां एक तीसरी चीज भी है-मानना। जाता है और जहा परीक्षक नहीं बन पाता बहा पहिले जाने, फिर अपने अनुभव तथा अन्य ज्ञान । विश्वास से काम लेता है। मनुष्य का जीवनके आधार से परीक्षा करे, फिर माने । परीक्षा व्यवहार विश्वास और परीक्षा के समन्वय से का मारने की आने की नहीं चलता है । जहा अपनी गति हो वहां परीक्षा करना चाहिये, बालक माँ बाप की बात की परीक्षा करत जानना तो पहिले भी हो सकता है। हैं और मा बाप की भी परीक्षा करते हैं। जब प्रश्न-जो शास्त्र की परीक्षा कर सकता है बालक मा बाप की बात का भी विशस नहीं उसे शास्त्र की जरूरत क्या है ? जिस बुद्धि वैभव करता है तब समझना चाहिये कि उसमें परीक्षकत्ता से वह शास्त्र की परीक्षा कर सकता है इसी से है। हरएक श्रादमी को मा बाप नहीं कहता, वह शास्त्र में वर्णित विषय क्यों न जाने १ विशेष आकृति स्वर आदि से मा बाप को पहि चानता है. यह मा बाप की परीक्षा है। जैसी उत्तर-यहा गुरु-परीक्षा नहीं अालोचनपरीक्षा है, इस परीक्षा में उतने बुद्धि-विभव की उसकी योग्यता है वैसी परीक्षकत्ता है। प्रारम्भिक शिक्षण में विश्वास से काम लेना ही पड़ता है जरूरत नहीं होती जितनी शास्त्र के निर्माण में । और परीक्षकता का उपयोग भी कुछ नियमों के निर्माता को अप्राप्त वस्तु प्राप्त करना पड़ती है, अनुसार करना पड़ता है। परीक्षा करने में तीन अलोचक को प्राप्त वस्तुकी सिर्फ जांच करनापड़ती बातों का विचार करना चाहिये:है। प्राप्त वस्तु को आचना सरल है पर उसका वस्तु का मूल्य २ परीक्षा की सुसम्भावना निर्माण या अर्जन कठिन है इसलिये हर एक की मात्रा, ३ परीक्षा न करने से लाभ हानि की। आदमी शास्त्र-निर्माता नहीं हो सकता पर परी- मर्यादा। क्षक हो सकता है। सोना चॉदी आदि की जितनी परीक्षा की जाती है उतनी साधारण पत्थरों की नहीं । प्रश्न-परीक्षक घनने के लिये कुछ विशेष उसी प्रकार गरु शास्त्र देव आदि की जितनी ज्ञान की आवश्यकता है पर विना परीक्षा किये परीक्षा की जाती है उतनी अन्य सम्बंधियो.की किसी को कोई बात मानना ही न चाहिये ऐसा नहीं. क्योंकि गरु शास्त्र यानि पर लोक-परलोक हालत में विशेष मान कैसे मिलेगा १ बालक का का कल्याण निर्भर है। भी कर्तव्य होगा कि वह माँ बाप की बात परीक्षा २ शान गुरु आदि की परीक्षा जितनी की करके माने, इतना ही नहीं किन्तु माँ बाप की ससम्भव है उतनी माता पिता आदि की नहीं। भी परीक्षा करे। जब सरस्वती माता की परीक्षा सम्भव है. माता पिता कहलानेवाले माता पिता की जाती है, गुरु की परीक्षा की जाती है तब न हो कुछ संकरता हो, शेशव मे उनने अपना माँ बाप की परीक्षा क्या नहीं ? पर इस प्रकार लिया हो, तो हमारे पास ऐसे चिह्न नहीं हैं कि परीक्षकताके अद्वैत से क्या जगत का काम चल उनकी ठीक ठीक डाँच कर सकें। इसलिय माता सकता है। पिना की असलियत की जाँच कम की जाती है।
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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