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________________ - - - - - का प्रयत्न करता है वह गुरु है । साधारणतः उन जो सम्प्रदाय भी बनाये वे मनुष्यमात्र की साधुता के बिना कोई सच्चा गुरु नहीं होसकता। सेवा करने के लिये स्वयंसेवकों के संगठन के क्योकि सन्चा गरु होने से एक तरह की नि.स्वा समान ये वे जगत्कल्याण की प्रत्येक चरत अहण र्थता जत्नी है. और वही साधुना है। नि. स्वार्य करने को तैयार थे इन्हें कोई पुरानी परम्परा का या परोपकार या स्वार्थ से अधिक परोपकार साधुता अमुक मानव-समूह का कोई पक्षपात न था। का लक्षण है। विश्वहित के नियमो को जीवन मे उसारकर गुरु की तीन ओगया है। स्वगत सघगरु बताना इनका ध्येय था इसलिये व विश्वगुरु थे। और विश्वगुरु । दुनिया के लिये वह कैसा भी हो पर इनके बाद जो साम्प्रदायिक लोग परन्तु जो हमाग उद्धारक है वह स्वगुरु ( कीत इनके अनुयायी कहलाये उनके लिये विश्वहित तार) है। परोपकार आदि तो उसमें भी होना गौण था अमुक परम्परा था अमुक नाम मुख्य । चाहिये इतना ही है कि उसका उपकार एक था जिनको अपना मान लिया था उनके लिये वे. व्यक्ति तक ही सीमित रहता है। दूसरो को पर्वाह नहीं करते थे इसलिये वे नेता जिसफर उपकार किसी एक वर्ग नल या अधिक से अधिक संघगुरु कहे जा सकते हैं, समाज पर हे वह सब-गरु ( जिपतार है। हिन्द. विश्वगुरु नहा। मुसलमान, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि सम्प्रदायों को प्रश्न--क्या कोई हिन्दू, मुसलमान. जैन, सेवा करनेवाले गा भी संघ गुरु हैं। इसी प्रकार बौद्ध या ईसाई आदि रहकर विश्वगुरु नहीं हो राष्ट्र, प्रान्त आदि की सेवा करने वाले भी संग. सकता। उत्तर-हो सकता है पर वह हिन्दु या प्रश्न -मनुष्य कितना भी शक्तिशाली हो मुसलमान आदि अपने वर्ग के लिये दूसरों का पर यह सारे जगत के प्रत्येक व्यक्ति की सेवा नुकसान न करेगा। नास की छाप रहेगी पर नहीं कर सकता इसलिये वडा से बड़ा गुरु भी काम व्यापक होगा। इसलिये वह विश्वमात्र की संघ-गुरु कहलायगा फिर विश्वगरु भेढ किसलिये सेवा करने की नीति के कारण विश्वगुरु कहलाकिया। यगा। ___उत्तर-विश्व-गुरू होने के लिये प्रत्येक प्रश्न-इस प्रकार उदारता रखने से ही व्यक्ति की सेवा करने की जरत नहीं है किन्तु अगर कोई विश्वगत कहलाने लगे तब जिसको उस उदारता की जरूरत है जिस में प्रत्येक व्यक्ति पडोसी भी नहीं जानता वह भी अपने को विश्वसमा म जिसकी सेवा-नीति मनुष्यमात्र या गह कहेगा। विश्वगुरुत्व बडो सस्ती चीज हो प्राणिमात्र के कल्याण की हो। फैलने के विशाल जायगी। माधन न होने से वह थोड क्षेत्र में भले ही काम रे पर जिसका मन सकुचित न हो वह विश्व उत्तर--विश्वगुरु को पहिले गुरु होना ही चाहिये, वह सिर्फ उदार नीति रखता है पर उस मन--राम, कृष्ण, महायोग, बुद्ध, ईसा, तो वह गर ही नहीं है विश्वगुरु क्या होगा १ नीति पर दूसरा को चलाने की शक्ति नहीं रखता मुरम्मद आदि महात्माओं ने किसी एक जाति या मदाय के लिय काम कियाथा तो इन्हे सघ उस प्रकार द्वार और शुरु होने के साथ उसका प्रभाव इतना यापक होना चाहिये जो जमाने एक माना जाय या विश्राम को देखते हुए विश्वव्यापी कहा जा सत्र । जन सर-विश्यगर (जीयसतार) क्याफि जाने आने के साधन थोड़े थे, छापाग्याना, समासही नीति मनुष्यमान की सेवा करने की थी। चार पत्र, नार श्रादि न होने से मनुष्य अपना
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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