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________________ वाष्टकाड --- २१५ - -- - - प्रभाव बहुत नहीं फैला पाता था तब अरब या प्रश्न विश्वगर तो हर हालत में पात्रमगध में ही प्रभाव फैला सकना विश्वगुरुत्व प्रयक मालूम होता है पर संत्र-गुरु तो कुर होने के लिये पर्याप्त प्रभाव था । आज उतने से है क्योंकि वह अपने संघ की जितनी भलाडू काम नहीं चल सकता । आज विश्वगुरु होने के करता है उससे अधिक दूसरे संघो को चुराई लिये कई राष्ट्रो की जनता पर थोडा बहुत प्रभाव करता है। चाहिये । कल गृह मनन आदि में मनुष्य की गति हो जाय तो केवल पृथ्वीपर प्रभाव होने से , उत्तर-जैसे स्त्रगर का यह अर्थ नहीं है ही कोई विचार न कहलायगा । उसे उससे भी KIRTA किपर की बुराई करे उसी प्रकार संघग र का अधिक प्रमात्रफैलाना पड़ेगा इसलिये विश्वास भी यह अर्थ नहीं है कि वह सब की बुराई करे। होने के लिये उदारनीति, गुरत्व और गापक भलाई का सेवा क्षेत्र परिमित है और बाकी क्षेत्र प्रभाव चाहिये। पर काफी उपेक्षा है यही उसका संघ-गुरुत्व है, प्रश्न-ऐसा भी देखा गया है कि ग रत्व पर अगर विश्वका अहिन करे तो वह एक और उदारता होने पर भी जीवन में किसी का प्रकार का कुगर हो जायगा । एक आदमी धर्मप्रभाव नहीं फैला और मरने के बाद वह अपेक्षा । मद के वश में होकर जगत की निन्दा करता है कृत विश्वव्यापी हो गया। जैसे म ईसा को या सत्र को मिथ्यात्वी या नास्तिक बताता है तो लीजिये, उनके जीवन में उनके अनुयायी इनेगिने वह कुगर है। थे पर आज करोडो की संख्या में है तो उनका प्रश्न-पर निन्दा से अगर ग र कुग र बन गुरुत्व उनके जीवन-कान की दृष्टि से लगाया जाय तो सत्य-असत्य की परीक्षा करना कठिन जाय या आज की दृष्टि से। हो जायगा क्योकि असत्य की निन्दा करने से ___ उत्तर-ऐसे व्यक्ति मरने के बाद गुर नहीं आप उसका गुरुत्व छीनते हैं ।। रहते, वे देव व्यक्तिदेव, बन जाते है। यह स्थान उत्तर-असत्य की निन्द्रा करना बुरा नहीं विश्वार से भी ऊँया है। पर मानलो कोई देव है, निष्पक्ष आलोचना आवश्यक है और कल्यानहीं बन सका, वह मनुष्यमान का सेवक यो णकर को कल्याणकर ओर अकल्याणकर को गरथा पर अपने जीवन में नही फैला तो भी अकल्याणकर भी कहना ही पड़ता है पर यह वह विश्वगर कहा जायगा। क्योंकि विश्वग र कार्य निष्पक्ष भालोचक बन कर करना चाहिये होने का बीज उसके जीवन में था जो कि समय और धर्ममद आदि मद के कारण पर-निन्दा कमी पाकर फल गया। जीवन में फजे या जीवन में न करना चाहिये। बाद फले वह विश्वगुरु कहलाया । जो लोग रन-निष्पक्षता से क्या मतलब है ? हर. बीज से ही फल का अनुमान कर सकते हैं उस एक मनुष्य कुछ न कुछ अपने विचार म्यता की दृष्टि में वह पहिले ही विश्वगर था-बाकी ही है-आलोचना करते समय वह उन्हें कहाँ फेंक जगत की दृष्टि में फलने पर हो गया। टेगा? प्रश्न-इस प्रकार स्वर्गीय लोगों को विश्व उत्तर-अपने विचार होना ही चाहिये पर गुरु ठहराने से उन्हें क्या लाभ ? और अपने को उनके अनुसार सिफ मन को ही बनाकर रवी स्या लाम १ जिससे उनके अनुसार काम का मशे। इन निश्चय होना भो नन्दा है पर मन के समान बुद्धि _ 'उत्तर-उनको तो कोई लाभ नहीं परपीछेके को भी उनका गुलाम बनाकर मत रक्यो मालालोगोंको बहुत लाभ है। उनके पद-चिन्हां से उन्हे चना काते समय बुद्धिको विकास स्वतंत्र को कल्याणमार्ग पर चलने में सुभीना होता है । सनुभव और मर्कश निर्णय मानने नार रही।
SR No.010834
Book TitleSatyamrut Drhsuti Kand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1951
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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