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संस्मरण
[.६३. .. मुझे व्याख्यान देना सीखना है, आप लोग व्याख्यान दें तो अच्छी
बात है, व्याख्यान देना आजायगा, नहीं तो इतनी देर तक अवश्य बैठे जब तक मेरा व्याख्यान न हो जाय । यदि ऐसा न करेंगे तो मैं पंडितजी से शिकायत कर दूंगा.। . __ . . सभा के लिये सभापति कोई न मिलता था. रिपोर्ट से सभा का प्रारम्भ होता और मेरे व्याख्यान से उसकी समाप्ति । इस प्रकार बोलने का अभ्यास बढ़ाया। और लिखना भी व्याख्यानों की रिपोर्ट लिखने से सीख गया । ... व्याख्यान सभा का मेरे लिये एक उपयोग. और भी था। जब कोई विद्यार्थी मुझ से लड़ता या - मेरी बात न मानता तो बिना नाम लिये ही उन बातों का उपयोग व्याख्यान में करता। विरोधी विद्यार्थी को आड़ी टेड़ी वातों से सिद्धान्त और नीति की दुहाई के रूपमें खूब फटकारता । लड़ते समय तो कोई दो के बदले चार सुनादे पर व्याख्यान में क्या करे ? व्याख्यान देना हर एक को आता. नहीं था और व्याख्यान के विषय में वह लड़ भी नहीं सकता था। पीछे कोई कुछ कहता तो मेरा उत्तर यह होता कि
वह मेरा व्याख्यान था। व्याख्यान के विषय में लड़ाई कैसी । इस . प्रकार पिछले दिनों विद्यार्थी मंडल में मेरी काफ़ी धाक रही। सब
लोग मुझसे डरते थे कि न मालूम यह व्याख्यान में किस को कैसे ले बैठे। इससे मुझे अपनी महत्ता का थोड़ा थोड़ा भान होने लगा । मनुष्य में जब तक पशुता है तब तक बह भयंकरता को ही महत्ता का मुख्य रूप समझता है।