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विविध आन्दोलन
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जगत् ही यह काम कर सकता था और उसीने किया ।
: : मुनिधर्म की रक्षा करो' इस शीर्षक से मैंने एक लेख लिखा जो १ मार्च १९२८ के जैनजगत् में अग्रलेख के रूप में निकला: उसमें जैन शास्त्रों की दृष्टि से मुनिवेष की निरर्थकता, मुनिपद का महत्व और इन मुनियों के . शिथिलाचार की तरफ संकेत था साथ ही यह भी बताया था कि अयोग्य मनियों की पुराने समय में कैसी छीछालेदार होती थी। .. ..
:इस लेख के निकलते ही चारों तरफ से गालियों की बौछार आने लगी । सुधारक कहलानेवालों में भी विरोध किया और मिलने पर लाल पीली आँखें दिखलाई। पर मैं दवा नहीं, बल्कि लेखनी को और. तेज किया । हाँ, इस बात का पूरा खयाल रक्खा कि कोई झूठी बात न निकल जाय । साथ ही अपनी बातें शास्त्र के अनुसार लिखीं। __ . ' इस चर्चा में कोई कोई आक्षेप और उनके उत्तर बड़े दिलचस्प होते थे। जब वहुत से लोगों ने समाचार-पत्रों में चिट्ठी-पत्री में या मिलने पर मुनिनिंदक कहकर मुझे खूबं गालियाँ दी तंत्र मैंने लिखा- ... . __.. गालियों का स्वागत करने का अवसर मनुष्य को दो तरह से मिलता है । जब वह लड़के की ससुराल में जाता है तब समधिनें गाली गाया करती हैं या वह सुधारक बनता है तब स्थितिपालक लोग गाली गाया करते हैं-ये दोनों ही अवसर बड़े सौभाग्य से मिलते हैं। पहिले अवसर की तो हमें आशा नहीं है इसलिये ।