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________________ ९४] आत्म कथा . अपने बालविवाह की याद आते ही मुझे आज के नवयुवक से ईष्यांसी होने लगती है जिस के जमाने में बाल-विवाह-प्रतिवन्धक कानून बन गया है। . उस समय की अपनी मूर्खताओं की जब याद आती है तभी सोचने लगता हूं कि हमारे स्कूलों और कॉलेजों में इतने विषय पढ़ाये जाते हैं जो जीवन में बहुत कम काम आते हैं, बहुत से विषय तो सौ में एकाध के ही काम आते हैं उन विषयों की शिक्षा पर तो बड़ा जोर दिया जाता है पर दाम्पत्य शास्त्र का नाम ही नहीं सुनाई पड़ता । और जब कि आज नये नये शास्त्र वर्सात में घास की तरह पैदा हो रहे हैं तब दाम्पत्य-शास्त्र का प्रारम्भिक साहित्य भी व्यवस्थित नहीं होने पाया है। . जब मैं पुरानी मुर्खताओं और उनके फलों की याद करता हूं तब जोर जोर से चिल्ला कर कहने को तबियत चाहती है कि बाल-विवाह हर हालत में बन्द होना चाहिये और दाम्पत्य शास्त्र की शिक्षा हरएक युवक युवती को मिलना चाहिये। . .: . . (१३)-बनारस में अध्ययन सागर पाठशाला से सिर्फ तीन महीने के लिये मैं बनारस आया था । वनारस आने पर मुझे ऐसा अनुभव हुआ जैसा चिड़िया के बच्चे को घोंसले के बाहर निकलने पर होता है। वनारस एक तो शहर ही इतना बड़ा था जितना मैंने तब तक देखा न था फिर • संस्कृत विद्या का केन्द्र, गंगा . का किनारा, सागर पाठशाला से स्वतन्त्र या कुछ स्वच्छन्द वातावरण, इन सब चीजों ने मुझे लुभा
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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