________________
धारे भव थाय नही. ए क्षायकसम्यक्तनी खुबी छ. वली जेने सम्यक्तमोहनी गइ नथी, तेने क्षयोपशम सम्यक्त थाय छे. तेना उदयथी अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ जाय छे. सत्तामा मिथ्यात्व रहे छे. उदयमा रहेतुं नथी. ए समकितवालाने पण मुक्किनो निश्चय थाय छे. पण क्षायकवालानी पेठे तहवे मुक्ति जवानो निर्धार नहि, ज्यारे वधारे विशुद्धता थाय अने क्षायकसम्यक्त पामे त्यारे मुक्ति जाय; पण क्षायकसम्यक्त पाम्या विना मुक्ति पामे नहि. क्षयोपसम सम्यक्त रहे तो छासठ सागरोपम सुधी रहे, वली सम्यक्त सहित आयुष्य पण देवलोकन बांधे अने देवता नारकी होय तो मनुष्यनु ज बांधे, एवो ए सम्यक्तनो प्रभाव छे. दर्शनमोहनी टालवानां फल जाणीने जेम बने तेम एनो त्याग करवो अने ए त्रण दर्शनमोहनी ने पच्चीश चारित्रमोहनी ए सर्वे मलीने अठावीश मोहनी कर्मनी प्रकृति जाणवी. एनो सर्वथा त्याग थवाथी केवलज्ञान पामे. ज्या सुधी ए मोहनीकर्म छे त्यां सुधी पूर्ण गुण प्रगटे नही अने ए प्रकृतिओमां वर्त्तवाथी ज पाछां आकरां कर्म बंधाइने संसारमा जीव रोलाय छे. वास्ते एनो त्याग करवो, एने आधारे ज जीवने संसारमां भ्रमण छे. जीवने राग द्वेषनी प्रकृतिथी या लोकने विषे अपयश थाय छे. जे जे वस्तु धर्मपदमा निषेध करी छे, ते ते वस्तु आदरवाथी आ भवमा पण दुःख छे ने आवते भवे पण तेथी दुःख छ माटे समभावे मोहनीकर्म क्षय करवानो उद्यम करवाने तत्पर थq.
वेदनीकर्ममा सुखनुं वेदq ते शातावेदनी कर्म, दुःखनु वेवू ते अशा. तावेदनी कर्म. जे जीव पूर्वे नीतिमार्गे चाल्या छ, सत्य वचन बोल्या छ, अने जेमणे दया पाली छे, चोरीनो त्याग कस्यो छे, परस्त्रीनो त्याग वा स्वस्त्रीनो पण त्याग कस्यो छे. कोइ जीवन दुख न थाय एवी वर्तणुक क
छै, धननी तृष्णानो त्याग करी परोपकारमा तथा साचा देव गुरुनी भक्तिमां द्रव्यं वापरयु छे एवी पुण्य करणी करवाथी शातावेदनी कर्म बाध्यु छे तेनाप्रभावे पोताने अनुकूल सुखना पदार्थ मले छे, एथी विप