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नुभवगम्य आत्मतत्व करी शके नहि. ए कारणथी अात्मस्वरूप {झवे छे. तेथी ए त्याग करवा योग्य कही छे. पण मिथ्यात्वमोहनी ने मिश्रमोहनी करता एमां धर्मनी रुचि वधे छे; तेथी आ गुणनो दर्शाव कर्यों छे. आं. खोए झांख वले छे, सारे चस्मा पहेरवाथी पदार्थ अोलखी शकाय छे तेथी चस्मा सारां कहीए छीए, पण जेने झांख नथी ने पोतानी आंखे जोइ शके छे तेवू चस्मावालो जोइ शके नहि तेथी वस्तुपणे तो एवी इच्छा रहे छ जे आंखेथी झांख मटी जाय ने चस्मानो त्याग थाय तो सारं, तेम ज्यां सुधी मिथ्यात्वमोहनी छे तेनी अपेक्षाए सम्यक्त मोहनी सारी छे, परंतु सम्यक्तमोहनी ते पण मिथ्यात्वमोहनीना पुद्गल छे वास्ते ए सम्यक्तमोहनीना पुद्गल याग थाय त्यारे जीवने क्षायकसम्यक्त थाय छे अने त्यारे यथार्थ पूर्ण स्वरूप समजाय छे. कंइ पण शंका रहेती नथी अने सर्वज्ञे सूक्ष्म ज्ञान शास्त्रमा दर्शाव्यु छे ते सर्वे ज्ञानी महाराजना कह्या प्रमाणे शेहेलाइथी समजी जाय छे, ने जेने सम्यक्तमोहनीन जोर छे तेनाथी बधु बराबर समजी शकाय नहि, कांइक शंका पडे, सम्यक्तमोहनीवाला करतां मिश्रमोहनीवालाने वधारे शंकाओ पडे. ते करतां मिथ्यात्वमोह. नीवालाने तो घणी ज शंका पडे.बधी वस्तु अवली ज समजाय. जे शुद्ध मार्ग ते अवलो ज भासन थाय. कंइक कंइक मिथ्या पुद्गल खसे, तेटलु तेटलुं सहज कंइ खलं भासे. माटे हरेक प्रकारे मिथ्यात्वमोहनी, मिश्रमोहनी, सम्यक्तमोहनी नाश करवानो उद्यम करवो. ए त्रणे मोहनी सचा, बंध ने उदयथी संपूर्ण रीते नाश थाय छे त्यारे क्षायकसमकित थाय छ. वली ए त्रण मोहनी नाश थाय छे, तेनी साथे अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ पण नाश थाय छे. एटले क्षायकसमाकित प्रगट थाय छे, ते माणस तद्भवे मुक्ति जाय छे; पण कदापि सम्यक्त पामतां पहेलां जो बीजी गतिनु-नारकी, देवतार्नु आयुष्य बांध्यु होय तो बीजी गतिमां जाय, त्यांथी मनुष्यमां आवीने मुक्ति जाय, कदापि युगलियामां जाय तो युगलियामांथी देवतामा जइ त्यांथी.मनुष्यमां आवी मुक्ति जाय एथी ब