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• रखो. सर्वथा त्याग तो ज्यारे जीव केवलज्ञान पामवा क्षपकश्रेणी मांडे त्यारे ज थाय. रति मोहनी ते पुद्गलिक पदार्थथी जे जे अनुकूलता मले तेनाथी राजी थq. अरति ते प्रतिकूल पदार्थथी दिलगीर थq. भयमोहनी ते भयथी वारंवार बीना करवू. म्हाराथी उपवास थशे के नहीं थाय ? वली म्हाराथी श्रावकपणु, मुनिपणुं केम बने ? एम बीहे अने धर्मना कार्यमां वीर्य फोरवे नहीं; जे जे चीज नहीं करेली होय ते अभ्यासथी बने छ पण बीहे अने भयथी अभ्यास करे नही तो कोइ दिवस बने नही. तेम ज संसारी कार्यमां पण जेने मोहनीनो भय उदय छे ते दरेक काममा बीना करे.
अहिंआं कोई प्रश्न करे के पापथी बीहे तेनुं केम ? ते विष समजवू के पापथी अवश्य व्हीवू जोइए. धर्मयी व्हीवू नही. हिम्मत राखी उद्यम करवो. शरीरादिकें रोग प्रमुख होय तो विचारीने काम कर. छती शक्तिए व्हीने बेसी रहे, तेनाथी कोइ काले धर्म सधाय नही. वास्ते भयमोहनीनो जेम बने तेम त्याग करवो. शोकमोहनी ते कोइ पोताना कु. टुंबी अथवा मित्र मांदा थाय अथवा मृत्यु पामे त्यारे शोकातुर थाय, रडे, कूटे, अनेक प्रकारना विकल्प करे तेथी घणां कर्म बंधाय छे. वली वेपारमां नुकशान थाय, अथवा कोइ देवालु काढे अने पोतार्नु द्रव्य जाय त्यारे शोक करे छे. पोताने अनुकूल घर, मकान, नोकर, वाहन नहीं मलवाथी अथवा प्रतिकूल मलवाथी पण शोक थाय. आमां जेने मोहनीकमनुं जेवू जोर ते प्रमाणे शोक थाय छे. केटलाक उत्तम पुरुषोने शोकमोहनी ओछी थाय तो विचारे छे जे “ आ कुटुंब, देह, घर, प्रमुख जे जे संसारी पदार्थ छे, ते सर्वे अस्थिर छ; अस्थिर पदार्थनो विनाश तो थवानो छे तो म्हारे शा सारू विकल्प करवा जोइए ? ज्यां सुधी पुन्योदय हतो यां सुधी सर्व पदार्थ स्थिर रह्या, पापनो उदय थयो त्यारे नाश थया, माटे शा सारू शोक करीने कर्म बांधवां ? आत्मधर्म ज म्हारो छे. बीजी कोई वस्तु म्हारी नर्थी, मात्र संसार म्हाराथी छोडातो नथी तेथी हुंम्हाएं म्हारं कहुं ईं अने व्यवहारोचित वर्तना करंडूं. वस्तुधर्मे वस्तुमात्र जड