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जे स्थानके जवानु कर्म बांध्यु छे ते स्थानके पाछा एवा प्राण मले छे ने सां उपजे छे. वस्तुपणे पण आत्मानो विनाश थतो नथी. जेम सुवर्णना अनेक घाट बने छे. सुवर्णनी माला बनावी ते भागीने कंदोरो बनान्यो, वली कंदोरो भागी कडां बनान्यां पण बर्धे स्थानके सुवर्ण कायम रहे छे. तेम जे जीव पंचेंद्रि मनुष्य होय छे ते एकेंद्रि, बेरोंद्रिय तेरोदि, चतुरेंद्रिय, नारकी, देवता विगेरेमां जेवू जेवू कर्म बांधे छे ते प्रमाणे जाय छे. त्यां
आत्मप्रदेशनो घाट फेरफार थाय छे. जेम के हाथीना शरीरमां आत्मप्रदेश सर्वत्र व्यापी रहे छे अने कुंथुनाना शरीरमा कुंथुआ जेटलामा व्यापी रहे छे. जे प्रमाणे शरीर होय ते प्रमाणे न्हानी म्होटी अवगाहना बने छे. दीवो करी तेना उपर टोपलो ढांकीए तो तेटलामा ज प्रकाश पडे छे अने ते टोपलो उपाडी लइ दीवो घरमां मूकीए तो बधा घरमां अजवालु करे छे तेम ज आत्मानी अवगाहना एटले फेलावो ओछो वधतो थाय छे. तेनुं नाम जैनशासनमा पर्याय कहेवाय छे. तेथी आत्मा द्रव्यथी नित्य छे अने उपर मुजब पर्याय पलटाय छे ते पक्षथी अनित्य कहेवाय छे. हवे आत्मा नित्य छे ते पण प्रत्यक्षपणे समजाय छे. जीव पोते आ भवमां मरण पाम्यो नथी पण गए भव मरण पाम्यो छे तेथी बालक, युवान अने वृद्ध सर्वने मरणनो भय छे. "रखे मरी जइश" ए पूर्वे मरण पाम्यो छे तेनी ज संज्ञा चाली आवे छे. जेम के-माणस उंधी जाय छे त्यारे बेभान अवस्था थाय छे तो पण दिवसे कापडनो धंधो करता होय छे तो केटलाक उंघमां पोतीयु अथवा हरकोई वस्त्र हाथमां आवे ते फाडी नाखे छे ते शुं छे ? दिवसे काम कर्यु होय तेना उपयोगनी ज संज्ञा छे. जेम वली उंघमां विचारो पण थया करे छे, जागतापणे जेने नरघां वगाडवानी टेव छे तेनुं चित्त अन्यकार्यमां होय छे तो पण आंगलीयो हाल्या ज करे छे. तेम पाछला भवनी संज्ञाए आ भवमां कार्य थाय छे. पाछला भवनुं तो भान नथी पण पाछले भवे टेव पडी छे, तेम थयां करे छे. जेम के बालक जन्मे छे अने तुरत ज ते पोतानी माताने धाववा