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(३४) ल्प करवो उचित नथी, खोटा काम करयां तेनी शिक्षा भोगववी ज जोइए. एवी सुंदर भावना लावीने ज्यारे जीव समभावमा रहे छे त्यारे ते उपक्रमी क्रर्मने उपक्रम लागे छे अने तेथी जलदी ते कर्मनो नाश थइ जाय छे, अहिं आत्मानी पुद्गल संजोगे राग द्वेष रूप परिणती न थइ ए ज चिकाश ओछी थइ तेथी पूर्वनां जे कर्म हतां ते खरी गया. वली शुभ कर्मने पण उपक्रम लागे छे ते एवी रीते के-ज्यारे जीवने पुन्यना उदयथी धन, दोलत, पुत्र, घर, हाट विगेरे बधी वस्तु सुंदर मलेछे त्यारे जीव अहंकारमा लीन थइ जाय छे. आवी रीते अहंकार करवाथी शुभ कर्मने उपक्रम लागे छे. कारण जे शुभकर्म बंधाय छे ते मंद राग द्वेषथी बंधाय छे अने ज्यारे अहंकारादि जोर करे छे त्यारे तिव्र राग द्वेष थाय छ ते अशुभ छे ने अशुभ तेथी शुभना पुगल भोगवाय त्यारे शुभ ओछु थयु ए ज उपक्रम लाग्यु. माटे उत्तम पुरुष गमे तेटली ऋद्धि मले तो पण अहंकार करता नथी पण उलटा भावना भावे छे के-" पूर्व धर्मकरणी करी तेना प्रभावे शुभकर्म उपार्जन थयुं छे तो हवे मोहने वश पड़ी हुं अहंकार करी कर्म वांधीश तो वली दुर्गतिमां जवू पडशे, आ पुद्गलिक सुख तो अस्थिर छे, संसारी वस्तुनो संयोग ते वियोग संयुक्त छे माटे तेमां मद करवो ते योग्य नथी. वली तेवा सुखमां मम थर्बु ते पण योग्य नथी. म्हारे तो आत्मस्वभावमां स्थिर रहे, ए ज योग्य छे." आवी भावना भाववावाला उत्तम जीवना शुभ कर्मने उपक्रम लागतां नथी पण उलटां शुभं, कर्म पुष्ट थाय छे.
४७ प्रश्न:-शुभकर्म पुष्ठ थवाथी ते पण मुक्तिने अटकावे छे माटे पुन्य तथा पाप बन्ने छोडवां योग्य कह्यां छे तेनु केम ? , उत्तरः-शुभकर्म बांधती वखत राजा, चक्रवर्ति, देवता, शाहुकार इत्यादि थइने पुद्गलिक सुख भोगबवानी इच्छाओ राखवाथी जे पुन्य वंधायः छे, तेवा पुन्यनी इच्छा राखवानो तो निषेध ज छे. एवी इच्छा तो राखवी ज नहीं. कारण के एवी इच्छाए करी जे पुन्य बंधाय छे ते पापानुबंधी पुंन्य बंधाय छे. एटले ते पुन्य भोगवतां पाछु पाप बंधाय छे, तेथी