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(३१) थाय तो त्या स्त्रीनी योनिमा अत्यंत अशुचीवाला स्थानकमां वेसुमार दु. ॐधीनो अनुभव करतां उपजq अने त्यां उधे मस्तके नव मास पर्यंत रहे, एवां गर्भावासनां दुःख भोगवां, तिर्यंच गतिमां जq तो त्यां पण क्षुधा, तृषा सहन करवी अने बीजां पण अनेक प्रकारनां दुःख भोगवां. माटे एवा पुद्गलीक सुखने हुं सुख मानीश नहीं.' आवी भावना श्राववाथी सांसारिक सुखने सुख मानवारुप केफ उतरी जाय छे. एम करता कदापि बधो केफ न उतरे तो तेना निवारणने माटे तप संयमरुप औषध वापरीने मोहजन्य केफ उतारे छ. तप संयमादि वडे जेम जेम कर्मों नाश पामतां जाय छे तेम तेम आत्मा शुद्ध थतो जाय छे. एटले पछी जे सुख दुःख प्राप्त थाय छे, तेमा समभाव राखे छे अने विचार के के 'देहनी साथे रहीने मे जे जे कर्म बांध्यां छे ते ते देहने संबंधे उदयमां श्राववाथी भोगवाय छे एमां म्हारे ज्ञातापणे न्यारा रहेवू योग्य छे. परंतु मने दुःख थाय छे, मने सुख थाय छे, एम चितवq योग्य नधी. ' आत्री विचारणाथी केफ उतरतो जाय छे अने सावधानता वधती जाय छे. तेमा पण जेम फरीने केफ करे छे तो पाछी बुद्धि अवराइ जाय छे तेम गुरु महाराजना उपदेशथी शुद्ध भाव आव्या छतां पाछा संसारना मोहमा पडी जाय छे तो पार्छ ज्ञान अवराइ जाय छे. केटलाएक मनुष्य एवा दृढ होय छे के एक वार केफ उतरया पछी तेनो गेरफायदो समजीने फरीने कदापि पण केफनो प्रसंग करता नथी. तेम केटलाएक अल्पसंसारी जीवो तो धर्म सांभल्या पछी दिन परदिन आत्मानी शुद्धता करता जाय छे अने छेवट सर्वज्ञपणुं संपादन करे छे, तेमनुं ज्ञान पछी अवरातुं ज नथी, सदाकाल एक सर ज रहे छे अने तेने फरीने संसारमा भाववं पण पडतुं नथी. ४४ प्रश्नः कर्मथी रहित थाय छे तेने पाछां कर्म केम लागतां नथी ?
उत्तर:-रागद्वेषरुप चिकाशना योगथी ज कर्म लागे छे अने राग । द्वेष छे ते कर्मने योगे थाय छे ते कर्म नीकली गयां एटले तेनो योग