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उत्तर:-आपणी दृष्टिए प्रत्यक्ष देखीए छीए के बुद्धि अरुपी छतो मदिरापान करनारनी बुद्धि भष्ट थइ जाय छे अने तेनो केफ चडे छे त्यारे जेमतेम बके छे, तो मदिरा जड उतां बुद्धिने केम आवरे छे ? वली केफ उतरे छे त्यारे पाछी बुद्धि ठेकाणे आवे छे तेम कर्म पण एवो ज पदार्थ छे. तेना संयोगथी आत्मानो ज्ञान गुण अवराइ जाय छे अने पडदामां रहेली अथवा मेलनो समूह लागेली वस्तुओनुं पोतानु खरं स्वरुप जेम देखातुं नथी तेम कर्मरुप मेल लाग्याथी आत्मानी शक्ति अने स्वरुप देखी शकातुं नथी.
४३ प्रश्न:-आत्मा निरंतर केम करीने अवरायलो ज रहे छे के तेमां फेरफार थाय छ १ अने ते कोइ वखत पण शुद्ध थशे के नहीं ?
उत्तरः-प्रात्माना ज्ञानने कर्मनो केफ लागेलो छे. केफ करनार मनुप्यने जो कोइ जबरी फिकरनी बात करे अथवा खटाइ विगेरे केफना उ. तारनी चीज खबरावे तो तेनो केफ उतरी जाय छे, तेमप्राणीने पण गुरु महाराजना योगथी अथवा पूर्वना क्षयोपशमबडे ज्यारे पोताना आत्मानुं खरुं स्वरुप समजाय छे अने पुद्गलना संगथी अनादिकाल संसारमा परिभ्रमण करयान समजाव छे त्यारे तेनाथी भय पामे छे एटले कर्मनो केफ उतरी जइने ज्ञानदशा जागृत थाय छे. ते वखते विचार छे के, 'हुँ जे सुख मार्नु छु ते तो जड पदार्थवडे मात्र मानी लीधेनुं सुख छे. तेनाथी म्हारा प्रात्माने तो सुख मथी पण उलटुं कर्मबंधनरुप दुःख छे. वली ए सुख जेम फांसी उपर चडनार मनुष्यने सारी सारी वस्तु खावा आपे छे पण पछी तुरत फांसीए चडावे छे तेना जेवं छे. संसार सुखनी लीनता पण एवी ज छ कारण के हालना समयमां म्होटामा म्हाडें आयुष्य प्राये सो वर्षनुं होय छे तो एटलो काल सुख भोगवईं अने पछी तेनाथी थयेला कर्मबंध बड़े नरके जq त्यां सागरोपमनां आयुष होवाथी असंख्य , वर्ष पर्यंत दुःख भोगवq तेना प्रमाणमा मनुष्यना भवनुं सुख काइ लेखामां नथी. कदी मरण पाम्या पछी नरकमां न जतां मनुष्य गतिमा जर्बु