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(१९) पात्र नेहुं अविश्वासनु पात्र,-प्रभु आश्रव रहित: ने हुँ आश्रयनो, भरेलो, प्रसु निःपाप ने हुँ.सपाप, प्रभु परमात्मपदने पामेला ने ई बहिरामापणे वर्तमो, प्रभु कर्म रहित ने हुं कर्म सहित. ,आ प्रमाणे भगवंत अनेक प्रकारना गुणे करीने संयुक्त छे भने हुं सर्व प्रकारना दुर्गुणोए
भरेलो ढु. तेथी आ संसारमा परिभ्रमण करूं छु: आजे भाग्यना उ। दयथी आ प्रभुनी मूर्ति में जोइ अने तेना आलंबनवडे मने प्रभुना
गुण- स्मरण थयुं तथा म्हारा अवगुण समजवानां आव्या, तो हदे । हुं म्हारा अवगुण टालवानो उद्यम ललं, प्रभु जे रम्ने चाल्या ते रस्ते
९.चालं अने प्रभु जेम वा तैम वर्त. आ प्रमागेनी भावना भाव। तां-भावपूजा करतां प्राणी पोताना कर्मनो क्षय करे छे, शुद्ध समकित। ने प्राप्त करे छे अने यावत् मोक्षसुखने पण पामे छे. माटे जिनप्रतिमा । नी पूजा करवाथी उपर प्रमाणे लाभ जाणीने सर्व भव्य जीवोए यथाi शक्ति जिनेश्वरनी भक्ति करवी.
२७ प्रश्नः-सामान्य प्रकारे जिनभक्तिनी रीत तथा लाभ तमे वताच्या, परंतु अनुक्रमे दररोज केवी रीते भक्ति करवी ते कहो ?
उत्तरः-दिवसमां त्रण वार जिनमंदिरे जयं. तेमां प्रातःकाले वास क्षेपवडे पूजा करवी, मध्यान्हे जल चंदनादिक अष्टद्रव्यथी, सत्तर प्र. * कारथी अथवा जेवी शक्ति होय ते प्रमाणे विशेप द्रव्यश्री पूजा करवी र अने संध्याये धूपपूजा तथा दीपपूजा करवी. या प्रमाणे त्रणकाल जि
नपूजा करवी. तेमा मध्यान्हनी पूजा. प्रभुने अंगे फरसीने करवानी छे तथा न्हावं जोइए, न्हाइने शुद्ध थया शिवाय प्रभुनो स्पर्श करवो घटित नथी. आपणुं शरीर मलीन होय छे ते न्हात्राथी शुद्ध थाय छे. माटे निर्जीव जग्या जोइने शरीरनी शुद्धि थइ शके तेटला जलबडे न्हावू. वधारे पाणी ढोलवू नहीं. वधारे पाणी ढोलाथी असंख्य अपकाय जीवोनी विना कारणे विरावना थाय छे. न्हाया पछी शुद्ध वस्त्रवडे शरीर साफ करवं. पछी सुंदर, शोभीता, सांसारिक कार्यमां नहीं बापरे