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(१८) वापरूं तो तेनाथी पापं बंधातुं अटके अने पुन्यबंधन थाय. वली ए धन प्राते म्हारूं नथी. म्हारी साथे आवबार्नु नथी. म्हारो ने एनो स्वभाव भिन्न छ. हुं चेतन डूं. ए जड छे. माटे म्हारे एना उपरथी मूर्छा उना. खीते योग्य छे. वली विचारे के, हु प्रभुनी भक्ति करीश तो, ते जोइने बीजा जीवो तेनी अनुमोदना करशै. वली केटलाएक भाग्यशाली जीवों भक्ति करवाने तत्पर थशे तो तेनो कारणीक हुँ' थइश. एटले प्रभुभक्ति करतां अनेक प्रकारना लाभ थशे. उत्तम जीवो प्रथम द्रव्यपूजा करीने पछी भावपूजा करे छे एटले ते अवसरे भगवंतना गुण विचारे छे अमे प्रभुना गुणने विचारीने तेनुं पोताना प्रात्मानी साथे मिलान करे छे के, अहो ? प्रभ अरागी ने हुं रागी, प्रभ अद्वेपी ने हुँ द्वेषी, प्रभु अक्रोधी ने हुँ क्रोधी, प्रभु अमानी ने हुं मानी, प्रभु अमायी ने हुं मायी, प्रभु अलोभी ने हुँ लोभी, प्रभु अकामी ने हुं कामी, प्रभु निर्विषयी ने हुं विप यी, प्रभु आत्मानंदी ने हुँ संसारानंदी, प्रभु अतिंद्रिय सुखना भोगी ने हुँ पुद्गलनो भोगी, प्रभु स्वस्वभावी ने हुं विभावी, प्रभु अजर में हुं स- . जर, प्रभु अक्षय ने हुँ क्षय स्वभाववालो, प्रभु अशरीरी ने हुं शररिवालो, प्रभु अनिंदक ने हुं निंदक, प्रभु अचल ने हुं सचल, प्रभु अमर ने हुं भरणे सहित. प्रभु निद्रा रहित ने हुँ निद्रा सहित, प्रभु निर्मोही ने हुं. समोही, प्रभु हास्य रहित ने हुँ 'हास्ययुक्त, प्रभु रतिए रहित ने हुँ रतिए सहित, प्रभु अरति रहित ने हुं अरति सहित, प्रभु शोक रहित ने हुँ शोक सहित, प्रभु भय रहित ने हुँ भय सहित, प्रभु दुगंछा रहित ने हुँ दुगंछा युक्त, प्रभु निर्वेदी ने हुं सवेदी, प्रभु अक्लेशी ने हुं सक्लेशी, प्रभु हिंसाए रहित ने हुं हिंसानो करवावालो, प्रभु वचने रहित ने हुँ मृषावादी, प्रभु इच्छारहित ने हुं अनेक प्रकारनी इच्छावालो, प्रभु अप्रमादी 'ने हुं सप्रमादी, प्रभु श्राशा रहित ने हुँआंशानो भरेलो, प्रभु सर्व जीवने सुखना दाता ने हुं अनेक जीवोने दुःखनो देनार, प्र. नु अपंचक ने हुं सवंचक-बीजाओने ठगनारो, प्रभु सर्वना विश्वास: