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(२१६ ) छोडी संयम लइ आत्माने भावता विचरे छे. शरीर छे ते आहारने आधारे रहे छे तेम छतां आहार न मले ने क्षुधा लागी तो विचारे छे जे अहो आत्मा ! तारो अणाहारी धर्म छे, आहार करबो ए जडनो धर्म छे माटे एमां तारे विकल्प करवो ते केवल कर्मबंधनु कारण छे. एथी आत्मा मलीन थाय छे. एम विचारी पोते समभावमा रहे. एम करतां आहार मल्यो ते अनुकूल एटले स्वादिष्ट वा, प्रतिकूल ते बेस्वाद मल्यो तो पण विचार छे के जे जे पुनल मल्यो छे, तेमा तेवो स्वाद छे पण ए पुद्गल ग्रहण करवा एज तारो धर्म नथी, तो सारा छे वा, नबला छे ए विचार करवो योग्यज नथी, शरीरमा रह्यो छे ने हजु एटली विशुद्धि नथी के आहार न करूं ने शरीरे पीडा थाय अने महारो आत्मा समभावमा रही शके नहीं तेथी आहार ग्रहण करवो छे, पण विकल्प कस्वो ए मारो धर्म नथी. एम विचारी पोतानी समभावदशामा रहे छे. एज प्रमाणे तृषा लागे त्यारे पण एमज विचारी तृषानो विकल्प करता नथी. शियालानी ऋतुमा टाढ बहु पडवायी शरीरे ताढनी वेदना थाय छे ते वेदनामां विचारे छे जे टाढ पुद्गलने लागे छे ते मारो जाणवानो स्वभाव छे, ते में जाणी एमां मने टाढ लागे छे एम विचार्य के ते अज्ञानता छे. वली एमज उनालानी ऋतुमा तापना पुद्गल आववानो स्वभाव छे ते प्रमाणे पुद्गलने स्पर्श छे तेमां मारे शुं ? हुं तो अरूपी छु. तेने कोइ पुद्गल स्पर्शता नथी ने ताप लागतो नथी. वली बफारो थ. वाथी पवननी इच्छा थाय छे ते मारी अज्ञानता छे. जडमांथी ममता नथी नीकली तेथी पवन खावानो भाव थाय छे. तेथी नवां कर्म बंधाइ मारो आत्मा मलीन थशे. एम भावी पवन खावानी इच्छा रोकी बाफनो विकल्प मूकी पोताना आत्माना आनंदमां आनंदितपणे रहे छे, पण चित्तमां उपाधि चिंतवता नथी. वली डांस, मच्छर करडे छे ते वखत पण पोतानो समभाव छोडता नथी, ने तेने उडाडवानो विचार करता नथी. ए करडे छे ते मने करडता नथी पुद्गलने करडे छे. · तेमां