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(१८५) श वर्ष करतां अधिक वर्षनुं पण होय. ते वात शतावधानी शा. रायचंद रवजीभाइए भद्रबाहुसंहिता जोइ हती. तेमां तेमना कहेवामा एबुंहतुं के जेनो धन लग्नमां जन्म होय तेनी कुंडलीमा चोथे मीननो गुरु. होय ने अग्यारमे तुलानो शनी तथा शुक्र होय. एवी रीतना ग्रह होय ने ते अंशे करी बलवान् होय, वली आठमे कोइ ग्रह आवे नहि ने शनीनी के शुक्रनी दशामां जन्म थाय एवी रीतनो योग श्रावे.तो बसेने दश वर्षनुं तेनुं आयुष्य थाय. माटे कोइक जीवनुं विशेष थाय ते पण शास्त्रमा अधिकार छे. वली आवश्यकनी बावीश हजारी टीकामां आर्यरक्षितसूरी महाराजे इंद्रनो हाथ जोयो तेमां बसे त्रणसे वर्ष सुधी जोइ पछी कडं जे आ तो इंद्र के माटे विशेष पण थइ जाय तो कंइ विरुद्ध नथी. परमामानां वचन केटलाएक बहु जीव आश्रित छे. केटलाएक जीव अपेक्षित छे ते गुरु परंपरागत ज्ञानवाला पुरुष जाणे, ते वर्तमानकालमां परंपरानु यथार्थपणुं रडुं नथी. आत्मार्थी पुरुषने परंपरागत ज्ञान जाणनार गुरुनो योग मलतो नथी. शास्त्रमा जे टीकाकारोए दर्शात्र कर्यो होय ते जाणी शके छे. बीजो इलाज नथी. ए पंचम कालनो प्रभाव छे. वास्ते बे शास्त्रमा जूदो जूदो अधिकार जोइ श्रद्धाभ्रष्ट थर्बु नहि. ते बन्नेना आशय खोलवानी महेनत करवी. तेम करवाथी कोइ शास्त्रमाथी अथवा कोइक पंडितथी खुलासो मली जशे. प्रश्नः-१२२ शुद्ध अशुद्ध क्षायक समकितना भेद कोइ ठेकाणे छ? उत्तरः-तत्वार्थनी टीकामां पाने २८ मे तथा नवपद प्रकरणनी टीकामां केवलज्ञानी महाराजनुं शुद्ध क्षायक समकित कयुं छे, ने छद्मस्थ श्रेणिकादिकनु अशुद्ध कर्तुं छे. प्रश्नः-१२३ चार अनुयोग छे तेमां निश्चय कया ? ने व्यवहार कया?
उत्तरः-आगमसार तथा नयचक्रमां तथा द्रव्यगुणपर्यायना रासमां चरणकरणअनुयोग, गणितानुयोग, धर्मकथाअनुयोग ए त्रण व्यवहारमा करा . ने एकद्रव्यानुयोग ते निश्चयमा कह्या छे अने