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( १८२) छे त्यां एवं कर्तुं छे जे नित्यराहु ने पर्वराहु ए बे प्रकारनां राहुनां विमान छे, तेमां नित्यराहु छे ते चंद्रमाना विमानथी नीचो छ ने एनी चालवानी गति एवी छे जे वद १ थी चंद्रमाना विमाननी नीचे थोडो थोडो आवतो जाय तेम चंद्रमा ढंकातो जाय. अमावासने दिवसे सर्व प्रकारे नीचो आवे छे तेथी बिलकुल चंद्र देखातो नथी. शुद १ थी. नित्य दूर खसतो जाय छे ते शुद १५ मे सर्वथा चंद्र नीचेथी खशी जा. य के तेथी सर्वथा चंद्रमा देखाय छे. ने पर्वराह छे ते कोइ वखत नीचे श्रावी जाय छे त्यारे ग्रहण थयुं कहेवाय छे. ए ग्रहण थयु होय ते वखत जमवू नहि. एवी रीते श्राद्धविधिमां कडं छे. ए निमित सारं नथी, ए कारणे मना करी छे.
प्रश्न-११५ आचार्य पंच महाव्रत रहित होय तो ते आचार्य गणाय के नहि ?
उत्तर:-पंच महाव्रत रहित आचार्य होय ज नहि. पंच महाव्रत र. हितने आचार्य पदवी आपवानी आज्ञा कोइ ठेकाणे नथी. व्यवहार सू. त्रमा मूलमा पाने २७ मे एवं कहेलूछे जे बहुश्रुत होय ने मायामृषा बोले, उत्सूत्र बोले, पापकर्म करी आजीविका करे एवाने आचार्य पदवी, उपाध्याय पदवी; प्रवर्तकपणुं-स्थविरपणुं-गणीपणुं कोइ पण पदवी आपवी नहि. ते जावज्जीव सुधी आपवी नहि. आ रीतनी मर्यादा छे. वली पंच महाव्रत रहितने साधु गणाय नहि तो आचार्य तो केम ज गणाय ? प्रश्नः-११६ एवा गुणवंत आचार्य न होय तो केम करे ? उत्तरः-घणा गुणीपुरुषो क्रियाउद्धार करी शुद्ध रीते पोते प्रवर्ते छे. जेम के सर्वदेवसूरि महाराज चैत्यवासी हता. तेमणे पोते क्रियाउद्धार करी शुद्ध मार्ग प्रवर्त्तव्यो. वली आनंदविमलसूरि महाराजना वखतमा पण शिथिलमार्ग थयो हतो, तेमणे पोते क्रियाउद्धार करी शुद्ध मार्ग प्र. वतव्यो. - वली व्यवहारसूत्रमा एम पण कहेळु छ जे आचार्य पदाने