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तो श्रावक आपे, पण बेची खाय एवा शिष्य होय तो श्रावक तेने पण पुस्तक आपे नहीं. आवी रीति साधुजीए राखवी जोइए.
- प्रश्नः -- ११२ देवताने देवी साथे कामभोग केवी रीते होय ? उत्तरः---भवनपति व्यंतर ज्योतिषि तथा सुधर्मदेवलोक तथा इशान देवलोक सुधीना देवताने तो मनुष्यनी पेठे भोग छे, ने सनत्कुमार माहेंद्र देवलोकवालाने मात्र स्पर्श करवानो छे. तथा ब्रह्मदेवलोक तथा लांतक देवलोकवालाने रूप जुए एटलोज काम छे, शुक्र तथा सहस्रारदेवलो. कना देवताने शब्द सांभलवानो विषय के आनत, प्राणत, आरण, अच्युत ए चार देवलोकवालाने एक बीजानुं मन मलवानो विषय छे. बीजा देवलोक उपर स्त्री नथी तेथी त्यांथी पोतानुं मन करे तेम स्त्री पण मन करे एटले संतोष थाय छे, कारण जे जेम जेम बीजा लोकथी उपर चडता जाय, तेम तेम विषय कामना ओछी थाय छे. ने चारमा देवलोक पछी नव ग्रैवेयक तथा पांच अनुत्तर विमानना देवताने तो समूलगी कामनी इच्छा ज नथी. श्रा अधिकार पन्नबणा सूत्रनी. छापेली प्रतमां पाने ७७८ मे छे.
प्रश्नः - ११३ देवता मनुष्य साथै भोग करे ? तथा मूल शरीरे श्रावे ? उत्तरः --- पन्नवणाजीमां छापेली प्रतमां पाने ६२५ मे तेजस शरीरनी श्रवगाहना अंगुलना श्रसंख्यातमा भागनी कही छे. तेनुं कारण ए जाणवु जे पूर्वभव संबंधी मनुष्यनी स्त्री उपर गाढ अनुराग होय तो देवता देवलोकथी आवीने ते स्त्री साथे भोग करे, ने भोग करतां काल करीने तेज स्त्रीने पेटे तरत उत्पन्न थाय. आ रीतनो अधिकार छे. तेथी समजाय छे के मूल शरीरे आवे तो तेजस शरीरनी अवगाहना अंगुलना श्रसंख्यातमा भागनी होय ने भोगनी वात पण एमांज छे.
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प्रश्नः - ११४ चंद्रमा पूनम पछी थोडो ढंकातो जाय छे, उघाडो थतो जणाय छे तेनुं शुं कारण ?
उत्तर:- जीवाभिगम सूत्रमां छापेली प्रतमां पाने ७८५ मे ए अधिकार
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