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(१७७ ) शीआले एक मास, ए उपरांत ग्रहण करवू नहीं. पण एनी अगाउ वर्ण, गंध, रस, फरस बदलाय तो ग्रहण करवा जोग्य नथी. दहीं बे दिवस उपरांतनुं कल्पे नहीं. काचुं दुध तथा दहीं तथा छाश साथे कठोल खावाथी बेइंद्री जीव उपजे, वास्ते ए वर्जq. वाशी नस्म पूरी प्रमुख बीजे दिवस कल्पे नहीं. उकालेलुं त्रण उभरानुं पाणी चोमासामा त्रण पहोर अचिच रहे पछी कल्पे नहीं. उनाले पांच पहोर सुधी कल्पे, पछी सचित्त थाय. आ मुजब श्राद्धविधिमां छे.
प्रश्नः-१०४ बकुश कुश्शील चे नियंठा पा कालमां कह्या छे, तेमां कुशील तो, भगवतीना पचीशमा शतकमा मूलगुणमा प्रतिसेवी कह्या छे. ज्यारे मूलगुणमां दूषण लागे सारे संयम गुणठाणुं केम रहे ?
उत्तरः-हरीभद्रसूरी महाराजे आवश्यकनी टीका करी छे. तेमां का छे जे, मूलगुण प्रतिसेवीने संजलना कषायथी होय ने ते अतिक्रम व्यतिक्रम ने अतिचार ए त्रण भांगा सुधी होय, अनाचार होय नहीं. तेथी समजाय छे जे आलोवी पडीकमी शुद्ध थाय, अनाचार सेवीने संजलना कषाय विना बीजा कषाय वर्ते त्यारे गुणस्थान जाय. प्रश्नः-१०५ अढार भाव दिशा केवी रीते। उत्तर:-आचारांगजीमां पाने ९ मे छापेली प्रतमां छे. १ समूीम मनुष्य, २ कर्मभूमीना मनुष्य, ३ अकर्मभूमीना मनुष्य, ४ अंतरद्दीपना मनुष्य, ५ बेइंद्री, ६ तेरेंद्री. ७ चौरेंद्री, ८ पंचेंद्री, ९ पृथ्वीकाय, १० अपकाय; ११ तेउकाय, १२ वायुकाय, १३ वनस्पति ते मूल बीज, १४ स्कंध बीज, १५ पर्वबीज, १६ अग्रबीज, १७ देवता, १८ नारकी ए अढार भाव दिशा कही तेनुं कारण जे जीव एटली जग्याए, संसारमा रोलाय छे माटे पोते विचारे जे हुँ कइ दिशाएथी आन्यो ? एटले कइ गतिथी आन्यो ? आदि विचारै नै संसारथी विमुख थाय. प्रश्न:-१०६ नव प्रकारे पुण्य बांधे ते शेमा छे ? उत्तर:-ठाणांगजी छापेलामां पाने ५१४ मे नव प्रकारे पुण्य ‘बांध