________________
( १६५ ) साथी ज बनावे. जे वधारे धनवान छे ते एवी वस्तु बनावी राखे, सामान्य धनवालाथी एवी चीजो नहीं बने; पण केसर चंदन फूल वीगेरे तो पोतानुज वापरे, पण देरासरनुं वापरवाथी लाभ थाय नहीं. आत्मप्रबोधमां कथा छे. तेने पाछला भवमा देवद्रव्यथी नुकशान थयु छे तेथी आ भवमां एवो नियम कर्यों छे जे देरासरना जले हाथ पण घोउं नहीं. वली श्राद्धविधिमां कथा छे. तेमां ज एक लक्ष्मीबाइए देवद्रव्य वधारवाने सारु घणा ओच्छव कराव्या छे, तेमां देरानां उपगरण वापरयां छे तेनो नकरो पण आप्यो छे; पण नकरों ओछो पडवाथी भोग अंतराय बांध्यो जेथी बीजा भवमा जनमी सारथी पीयरमां शोग पडवा लाग्यो ने पाणीग्रहण करया पछी सासरे शोग पडवा लाग्यो. पछी मुनि मल्या सारे पूछ्यु जे माहाराज ! म्हारे जन्मथी शोग पडे छे तेनु शुं कारण ? पछी गुरुए कह्यु जे देरानां उपगरण वापस्यां तेनो नकरो ओछो आप्यो तेनां फल थयां. आ उपरथी विचार करो जे नकरो आप्यो; पण ओछो पडवाथी नुकशान थयुं तो मफत देरानी चीज वापरीए तो वधारे नुकशान ज थाय, देरानी चीज पोताना घरना काम सारु वापरीए तेनुं तो कहेवू ज शुं ? माटे देरासनी तथा साधारणनी तथा ज्ञानदव्यनी चीजोथी घणाज अलगा रहे_ने कोइ पण अंशे आपणा घरना काममा म आवे एम करवू. ए द्रव्यनी न्यायथी वृद्धि करवामां तत्पर रहेवू.ने पूजा सेवामां तो पोताना द्रव्य विना चित्त प्रफुलित ज नहीं थाय, वास्ते शुद्ध सुंदर द्रव्यो पोताना ज वापरवा.
साकेतपुर नगरे सागरशेठ नामे परम श्रावक वसतो हतो. तेने धर्मी जाणी बीजा श्रावकोए देरासरनुं द्रव्य सोप्यु ने कहयुं जेआ द्रव्यमांथी देरासरना काम करनार सूत्रधार, सलाट, मजूरने तेनी महेनतना पइ. सा तमे आपजो. 'श्रा द्रव्य सागरशेठना हाथमा आपवाथी सागरशेठ लोभमां पड्यो तेथी सुथार प्रमुखने रोकडु द्रव्य आपे नहीं. तेने बदले 'अनाज गोल वस्त्र प्रमुख पे तेमाथी रु) नी कांगणी ८०) थायछे.