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________________ (१४६ ) भोगवे. एवा जीवने मनुष्यमां सुख छे, ते पण आवते काले दुःखना हेतु छे. माटे अधर्मीने सुखी जोइ मनमा सुख विचारवानी जरूर नथी, ने धर्मिष्ट जीव तो मनुष्य अथवा देवतामांथी आवे त्यां धर्म तो करेलो; पण केटलांएक हिंसादिक पाप करयां होय, ते इहां भोगवे. तेथी दुःखी देखाय पण ते जीवने धर्मना परिणामो छ, तेथी ते समभावे भोगवे छे. तेथी ते निर्जरा करी घणा विशुद्ध थइ मुक्ति वा, सद्गतीने पामे छे, माटे देखीतुं गुणीने दुःख छे ते सुखनुं हेतु छे, ने निर्गुणीने सुख छे ते तेने दुः खनुं हेतु छे. आq जाणी धर्ममा प्रवर्तवू तथा दुःख आवे समभाव राखवो ए ज आत्माने हितकारी छे. प्रश्नः-७९ श्रावक आराधक थाय तो केटले भवे सिद्धि वरे ? उत्तरः-आयुरपन्चख्खाण पयन्नामां का छे के संथारो करी सर्व वस्तु वो. सरावी सर्व जीव साथे खमतखामणां करी, आराधना करी काल करे तो उत्कृष्टा सात भव थाय. एथी अधिक भव थाय नहीं. वास्ते जरूर प्रा. राधक थवानी भावना हमेश करवी,ने आराधना करवानो छेली व. खते उद्यम करवो. प्रश्नः-८० भगवंत विचरे त्यारे रस्तामा साथे शुं शुं वस्तु होय ? उत्तर:-उवाइजीनी छापेली प्रतमा पाने ५९ मे नीचे लखेली वस्तु आकाशमां साथे चाले छे. । धर्मचक आगल चाले, मस्तक उपर त्रण छत्र साथे चाले, बन्ने बा । जुए चामरो धरी रह्यां होय छे, सिंहासन पादपीठ सहित साथे चाले, तथा धर्मध्वज आगळ चाले. आ वस्तुओ साथे चाले; तथा चोत्रीश अतिशय तथा पांत्रीश वाणी गुणे विराजमान होय. वली देवता पण घणा होय. एवी रीते विचरे छे. प्रश्नः-८१ गर्भमां जीव उपजे छे ते शी रीते उपजे छे ? ने वधे छे ते अनुक्रमे शी रीते वधे छे ? उत्तर:-आ बाबतनो अधिकार तंदुलविआली पयन्नामां छे. ते प्रथम
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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