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( १२ ) वाथी शुद्ध थाय छे ते सारु पंचाशकमां पाने ८ मे समायिक विषे तेना अतिचारमा पण एम कहुं छे जे मन अस्थिर छे, ते अभ्यास करवाथी स्थिर थाय छे. माटे रुडो अभ्यास करवो, ने आज्ञा आराघवा लक्ष रा. ख. जे जे प्रभु आज्ञा बहार थाय छे, ते सारु भावना राखवी. जे प्रभुनी आज्ञा प्रमाणे क्यारे करीश ? एवा भाववालाने सुधारो थवो निकटछे.
६७ प्रश्रः-यात्रा करवा तीर्थोए जवू तेमां शुं लाभ छे ? प्रभु तो रहेता होइये त्यां पण होय छे तो त्यां जवाथी शुं विशेष १ ।
उत्तरः-यात्रा जवानो लाभ समकित निर्मल थाय छे एम आवश्यक नियूंक्तिमा भद्रबाहुस्वामी चौद पूर्वधरे कयुं छे, ते प्रत हाजर नथी तेथी पार्नु लख्यु नथी. वली उपदेशमालामां धर्मदासगणि महाराजे गाथा ३३६ मां कह्यु छ जे श्रावक भगवानना पांचे कल्याणके यात्रा करवा जाय. हवे जवाथी फायदो थाय ते समजो के घर आगल वेपारनी, संसारनी, कुटुंबनी अनेक पीडा उपाधी होय तेना विकल्पथी धर्मसाधन बरोबर थाय नहि. ने ते विकल्पो घरमाथी बहार नीकल्या के टली जाय छे ? सोबतमां धर्मीष्ट भाइओ होय तो तेनी सोबते पण पोतानी बुद्धि शुद्ध थाय तथा शास्त्रनुं ज्ञान थाय. वली रस्तामां गामो आवे त्यां पण केटलाएक उत्तम मुनी महाराज तथा श्रावकनो योग मले. तेमनी पासेथी पण नवं ज्ञान मले. वली तीर्थे जइए त्यां पण एवा उत्तम पु. रुपनो योग बने. तेमनी पासे रहेवाथी ज्ञाननो बोध थाय तथा वैराग्य थाय ए लाभ थाय. इहां कोइ कहेशे जे एवा पुरुष पासे जइए ? ते विथे जाणवू जे त्यां तो एक ज गुणी पुरुष मले ने तीर्थे तो घणा गुणी पुरुषो मले. वास्ते वधारे लाभ थाय. तथा तीर्थे तीर्थंकर महाराजो तथा गणधर महाराजो तथा मुनि महाराजो ज्या ज्यां निर्वाण पद पाम्या छे, ते जग्यो जोइए के ते पुरुषो याद आवे, ने तेमना गुणनुं वर्णन थाय; नेथी बुद्धि शुद्ध थाय, वली ते पुरुषो जेवी रीते गुण पाम्या, ते रस्तो पकडवानी बुद्धि थाय, ने संसारथी उदासीनता थाय. ने आत्मतत्व खो