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(४३) है। यह बात भी ध्यानमें रखने के योग्य है कि इन्द्र वरुण आदिक वैदिक देवताओंकी पूजाका बन्द हो जाना इसकी दलील है कि यह लोगोको उनके मुख्य स्वरूपके पता लग जानेके कारण हुश्रा, इसलिये जय लोगोंको यह मालूम होगया कि वह केवल मानसिक कल्पनाके व्यक्तिगत रूपक हैं तो उन्होंने उस पूजाको जो उनके प्रसन्नार्थ किया करते थे, बन्द कर दिया । अनुमानतः वेदोंके और वैदिक देवताओंके गुप्तार्थकी कुञ्जी कभी बिल्कुल नष्ट नहीं हो गई थी, सेवक गण, साधारण ब्राह्मगा और साधु भी चाहे कितने ही उससे अनभित्र क्यों न रहे हों। बुद्धिमत्ताकी लहरके अन्तमें जो ब्राह्मणों के समयके वलिदानकी निवृ. त्तिके पश्चात् उठी, मालूम होता है इस कुञ्जीका बहुत अधिक प्रयोग किया गया । इस प्रकार महाभारत और रामायण की पद्यों और पुराणोंके रचे जानेके समयमें देवी देवता
ओंका एक बड़ा समूह जिसकी संख्या ३३ करोड है उस प्रारम्भिक ओर सीमित देवी देवताओंके कुटुम्पमें से जिनका वर्णन है, वेदोमे है, निकल पड़ा । इनके अतिरिक्त कुछ और काल्पनिक व्यक्तियो जैसे कृष्णकीरचनाभी हिंदू पुराणों के रचयि
(दि परमानेन्ट हिस्ट्री ओफ भारतवर्ष जिल्द ; २. पृ. ८)
अर्थ:-"ब्रह्माने सव शास्त्रोंमें सबसे पहिले पुराणको सुनाया और तत्पधात् उनके मुखसे वेद, मग, धर्म, शास्त्र, व्रत और नियम निकले।"