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( ४२ ) (५) इन मंत्रोकी भापा किसी सिद्ध भगवान (श्वर) कृत नहीं हो सकती और न शुद्धाहारी (शाकमक्षी) मृपियोंकी हो सकती है क्योंकि अग्रिम (ईश्वर) तो किसी पापमयी प्रथा की स्पष्ट या अस्पष्ट तौरसे पुष्टि नहीं करेगा और न मममसलने वाली भाषाका प्रयोग करेगा और अन्तिम मांस और रक्तके अलंकारोकी रचना कभी नहीं करेंगे।
इन वाक्योंके साथ यह वातमी ध्यान रखनी चाहिये कि वेदोंकी भापाका अर्थ इसी प्रकार समझमें पा सका है कि उसके शब्दोके वाह्य पथके नीचे छिपा हुआ एक गुप्त ज्ञानका सिद्धान्त माना जावे, गोकि हम तमाम रूपक अलङ्कारोंके भावको जिनका ऋपियोंने पविन मन्त्रोमें प्रयोग किया है, न समझ पावें। बहुतसे रूपक तो पुराणों में दिये हुरहवा नोंकी सहायतासे समझमें आ जाते है, और यद्यपि किसी पश्चातके प्रन्य की व्याख्याओंका उसमे पहिलो ग्रन्थमे पढ़ना न्यायसंगत नहीं है तथापि इस वातसे इनकार नहीं किया जा सक्ता है कि पुराणोंकी कथायें वेदोके देवी देवतामोका सुविस्तर वर्णन
* देखो:
"जैसा कि निम्न लेखसे विदित है, पुराणोको भी..."यथार्यमें वेदों से पूर्वका कहा जा सका है:
प्रथमं सर्वशास्त्राणा पुराणं ब्रह्मणा श्रुतम् , अनन्तरं च वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिमृताः । अगानि धर्मशास्त्रं च व्रतानि नियमास्तथा ॥
ब्रह्माण्डपुराणम् ॥"