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________________ ( ४४ ) तामोंने रच डाली। मगर यह कहना न्याययुक्त होगा कि यद्यपि रामायण, महाभारत और पुराणोंने लचे ऐतिहासिक 'घटनाओंका रहस्यपूर्ण और मलंकृत * पोशाक पहना कर इतिहासमें बडी गडबड उत्पन्न कर दो तो भी उसके साथ ही उन्होंने अपने देवताओं के कल्पितस्वरूपको दिखा कर धार्मिक उपासनामें बहुत कुछ सुधार किया । यद्यपि यह सुधार निस्सन्देह गम्भीर था तथापि यह अपने उद्देश्यकी पूर्तिमें असफल रहा, क्योकि केवल कल्पित देवतासमूहकी रवानगीने अर्ध काल्पनिक अर्ध ऐतिहासिक व्यक्तियोशी पूजा. के लिये द्वार खोल दिया, और साथमे ही कुछ नबीम समय के मगर प्राचीन प्रकारके देवतागण भी पूजा और प्रतिष्टाके “पात्र माने गये। राम और कृष्ण प्रथम प्रकारके और गिव पिछले प्रकारके देवता है। इनमें से वेटोमे किलीका भी वर्णन नहीं है जो एक ऐसी वात है जिससे योरुपियन समालोचकों की इस रायसी पुष्टि होती है कि हिन्दुओंने अपने देवताओ को बदल दिया है। मगर इस दोपके हिन्दू इतने अपराधी नहीं है जितमा वह रहस्यवादका रुझान है जो उनके मतमें व्याप्त है क्योंकि जहां कुल धर्म शिक्षा ऐसी भाषामें दी गई है हिजिसका शब्दार्थ तो कुछ और है और भावार्थ कुछ और ही "है, वहां मनुष्य चक्कर में पड सक्ते है और क्षमाके पात्र हैं अगर उनसे भूल हो जावे। उपनिषदोंने इस रहस्य व अन्धकारमई * देखो फुट वोट नं. ४ पुस्तकके अन्तमें ।
SR No.010829
Book TitleSanatan Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherChampat Rai Jain
Publication Year1924
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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