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अइवले महाबले,
वलभद्दे य सत्तमे ॥ २. दुविळू य तिविठू य,
प्रागमेसारण वहिणो । जयंते विजय भद्दे, सुप्पहे य सुदंसणे । प्राणंदे नंदणे पउमे, संकरिसणे य अपच्छिमे ॥
और त्रिपृष्ठ-भविष्य में ये नौ वासुदेव होंगे। जयंत, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनन्द, नन्दन, पद्म और संकर्षणये नौ बलदेव होंगे।
११६. इन नौ बलदेव-वासुदेवों के नौ-नौ
पूर्वभविक नाम, नौ धर्माचार्य, नौ निदानभूमियां, नौ निदान-कारण और नौ प्रतिशत्रु होंगे । जैसे कि
११६. एएसि णं नवण्हं बलदेव-वासु
देवाणं पुन्वनविया णव नामघेज्जा भविस्संति, नव धम्मायरिया मविस्संति, नव नियाणभूमियो भविस्संति, नव नियाणकारणा भविस्संति, नव पडिसत्तू भविस्सति, तं जहा१. तिलए य लोहजंघ, वरइजंघे य केसरी पहराए। अपराइए य भीमे,
महानोमे य सुग्गीवे ॥ २. एए खलु पडिसत्त, कित्तीपुरिसाण वासुदेवाणं । सवैवि चक्कजोहो, हम्मिहिति सचक्केहि ॥
१. तिलक, २. लोहजघ, ३. वज्रजंघ, ४. केसरी, ५. प्रभराज, ६. अपराजित, ७. भीम, ८. महाभीम, ९. सुग्रीव । ये कीर्तिपुरुप वासुदेवों के प्रतिशत्रु होंगे, सभी चक्र-योधी होंगे और सभी अपने ही चक्र से मारे जायेंगे।
१२०. जम्बूद्वीग द्वीप के ऐरवत वर्ष में
आगामी उत्सपिणी में चौबीस तीर्थङ्कर होंगे, जैसे कि
१२०. जंबुदीवे गं दोवे एरवए वासे
आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउवीसं तित्यगरा भविस्संति, तं जहा१. सुमंगले य सिद्धत्ये, णिव्याणे य महाजसे। धम्मज्झए य अरहा,
प्रागमिस्साण होक्सइ ॥ • मनवाय-मुत्तं
१. नुमंगल, २. सिद्धार्य, ३. निर्वाण, ४. महायश, ५. धर्मध्वज, ६. श्रीचन्द्र, ७..पुष्पकेतु, ८, महानन्द्र, ६. श्रुतसागर, १०.
समवाय-प्रकीर्ण