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बावण्णइमो समवायो
बावनवां समवाय
१. मोहणिज्जस गं कम्मरस वापन्न नामधेज्जा पण्णता, तं जहाफोहे कोये रोसे छोसे प्रखमा संजलणे फलहे चंडिपके भंडणे विवाए; माणे मदे दप्पे थभे अत्तुपकोसे गव्वे परपरिवाए उपकोसे प्रवक्कोसे उन्नए उन्नाम; माया उवही नियटी पलए गहणे णमे करके कुरुए वंभे फडे जिम्हे किदिवसिए अणायरणया ग्रहणया पंचरण्या पलिकंचणया सातिजोगे; लोभे इच्छा मुच्छा फंखा
ही तिण्हा भिज्जा अभिज्जा कामासा भोगासा जीवियासा मरणासा नंदी रागे।
१. मोहनीय कर्म के वावन नाम प्रजप्त हैं। जैसे किफ्रोध, कोप, रोप, अक्षमा, संज्वलन, फलह, चांडिपय, मंडन, विवाद मान, मद, दर्प, स्तंभ, प्रारमोत्कर्ष, गर्ष, परपरिवाद, उत्कर्ष, अपकर्ष, उन्नत, उन्नाम; माया, उपधि, निकृति, वलय, गहन, नूम, कल्क, फुरुक, दंभ. कूट, जैह्म, किल्विपिक, अनाचरण, गृहन, वंचन, परिकुचन, सातियोग; लोभ, इच्छा, मूर्छा, कांक्षा, गृद्धि, तृष्णा, भिध्या, अभिध्या, कामाशा, भोगाशा, जीविताशा, मरणाशा, नंदी, राग ।
२. गोयूभस्स णं आवासपचयरस
पुरथिमिल्लानो चरिमंतामो मलयामुहस्स महापायालस्स पक्ष. चथिमिले चरिमंते, एस 4 बावन्न जोयणसहस्साई अवाहाए अंतरे पण्णता ।
२. गोस्तूप प्रावास-पर्वत के पूर्वी चर
मान्त से वडवामुख महापाताल के पश्चिमी चरमान्त को अबाधतः अन्तर बावन हजार योजन का प्रज्ञप्त है।
३. एवं दोभासस्स णं केउकस्स संखक्स जयकस्स, दयमीस्स ईसरस्स।
३. इसी प्रकार दकभास केतुक को, शंख
यूप का और दकसीम ईश्वर महा. पाताल का [अन्तर ज्ञातव्य है ।]
समवाय-सुत्त
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समवाय-५२