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सोइदियावाते चक्खिदिवाते फासिदियावाते णोइंदियावाते ।
सोइदियधारणा aftaarधाररणा घारिदियधाररणा जिभिदियधारणा फासिंदियधारणा णोइदियधारणा ।
४. ईसाले गं कप्पे अट्ठावीसं विमाणावाससथसहस्सा पण्णत्ता ।
५. जीवे गं देवर्गात णिबंधमारी नामस्स कम्मस्स अट्ठावीसं उत्तरपगडीओ विधति,
त जहा
देवगतिनामं पंचिदियजातिनाम वेउव्वियसरीरनामं तेययसरीरनामं कम्मगसरीरनामं समचउरंस संठारणनामं वेडव्वियसरीरंगोवंगनामं वण्णनामं गंधनामं रसनाम फासना देवाणुपुव्विनामं लहनाम उवघायनामं पराधायनामं ऊमासनामं पसत्यविहायगइनामं तसनामं वायरनामं पज्जत्तनामं पत्तेयसरीरनामं थिरथिराणं दोन्हमण्यरं एवं नामं रिवंध, सुभासुभाणं दोन्हमण्यरं एवं नामं णिबंधइ, सुभगनाम सुस्तरनामं, प्राएज्जपाएज्जाणं दोन्हं प्रयरं एवं नामं णिबंधइ, जसोकित्तिनाम निम्मारणनामं ।
मनवाय-सुतं
न
श्रोत्रेन्द्रिय-अवाय, चक्षुरिन्द्रियअवाय, प्राणेन्द्रिय- अवाय, रसनेन्द्रिय-वाय. स्पर्शनेन्द्रिय-प्रवाय, नो-इन्दिय-वाय |
श्रोत्रेन्द्रिय-धारणा, चक्षुरिन्द्रियधारणा, घ्राणेन्द्रिय-धारणा, रसनेन्द्रिय-धारणा, स्पर्शनेन्द्रिय-धारणा, और नो-इन्द्रिय-धारणा ।
४ ईशानकल्प में विमानावास अट्ठाईस शतसहस्र / लाख प्रज्ञप्त हैं ।
५. जीव देवगति का बंध करता हुआ नाम कर्म की अट्ठाईस उत्तरप्रकृतियों को बांधता है, जैसे किदेवगतिनाम, पंचेन्द्रिय जातिनाम, वैक्रियशरीरनाम, शरीरनाम, तैजसशरीरनाम, कार्मरणशरीरनाम, समचतुरस्रसंस्थाननाम, वैक्रियशरीरअंगोपांगनाम, वर्णनाम, गंघनाम, रसनाम, स्पर्शनाम, देवानुपूर्वीनाम, अगुरुलघुनाम, उपघातनाम, पराघातनाम, उच्छ् वासनाम, प्रशस्तविहायोगनाम, त्रसनाम, वादरनाम, पर्याप्तनाम, प्रत्येकशरीरनाम, स्थिरनाम और अस्थिरनाम - दोनों में से एक का वंघ करता है शुभनाम और अशुभनाम -- दोनों में से एक बंघ का करता है, सुभगनाम, सुस्वरनाम, आदेयनाम और अनादेयनामदोनों में से एक का बंध करता है यशः कीर्त्तिनाम और निर्मारणनाम |
समवाय- २८