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इरायचउमासिया प्रारोवणा, २४. सपंचवीसरायचउमासिया प्रारोवणा, २५. उग्घातिया पारोवणा, २६. अणुग्घातिया पारोवणा २७.कसिणाप्रारोवणा २८. अफसिगा प्रारोवणा
बीस दिन की प्रारोपणा, २४. चार मास पच्चीस दिन की आरोपणा, २५. उद्घातिकी प्रारोपणा-लघु प्रायश्चित्त, २६. अनुद्घातिकी प्रारोपणा-विशेष प्रायश्चित्त, २७.कृत्स्ना प्रारोपणा-पूर्ण प्रायश्चित्त, २८. अकृत्स्ना आरोपणा अपूर्ण प्रायश्चित्त । इतना ही आचार-प्रकल्प है । इतना ही आचरणीय है।
एताव ताव पायारपकप्पे एत्ताव ताव पायरियध्वे ।
२. भवसिखिया जीवारणं प्रत्येगइयारणं मोहणिज्जस्स कम्मस्स अठ्ठावीसं फम्मंसा संतफम्मा पण्णता, तं जहासम्मत्तवेअणिज्जं मिच्छत्तवेयणिज्जं सम्ममिच्छत्तवेयणिज्ज सोलस फसाया णव पोकसाया।
२. कुछेक भवसिद्धिक जीवों के मोहनीय कर्म के अट्ठाईस कर्माश-प्रकृतियाँ सत्कर्म/सत्तावस्था में प्रजप्त है, जैसे किसम्यक्त्व वेदनीय, मिथ्यात्व वेदनीय, सम्यक्-मिथ्यात्व वेदनीय, सोलह कपाय और नो नो-कपाय ।
३. प्राभिणिबोहियणाणे अट्ठावीस
इविहे पण्णते, तं जहासोइदिययोग्गहे चक्खिदियत्योगहे पाणिवियत्योग्गहे निम्भिदिययोग्गहे फासिदियत्थोग्गहे गोइंदियत्थोग्गहे। सोइंदियवंजणोग्गहे पाणिदियवंजरपोग्गहे जिमिदियवंजणोग्गहे फासिदियवंजणोग्गहे।
३. आमिनिवोधिक ज्ञान अट्ठाईस प्रकार
का प्रज्ञप्त है, जैसे किश्रोत्रेन्द्रिय-प्रर्थावग्रह, चक्षुरिन्द्रियअर्थावग्रह, घ्राणेन्द्रिय-अर्थावग्रह, रसनेन्द्रिय-अर्थावग्रह, स्पर्शनेन्द्रियअर्थावग्रह, नोइन्द्रिय-अर्थावग्रह । श्रोत्रेन्द्रिय-व्यञ्जनावग्रह, घ्राणेन्द्रिय-व्यञ्वनावग्रह, रसनेन्द्रियव्यञ्जनावग्रह, स्पर्शनेन्द्रिय-व्य
जनावग्रह । श्रोत्रेन्द्रिय-ईहा, चक्षुरिन्द्रिय-ईहा, घ्राणेन्द्रिय-ईहा. रसनेन्द्रिय-ईहा, स्पर्शनेन्द्रिय-ईहा, नोइन्द्रिय-ईहा ।
सोइंदियईहा चक्खिदियईहा धारिणदियईहा जिभिदियईहा फासिदियईहा णोइंदियईहा ।
समवाय-सुत्तं
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समवाय-२८