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तेवीसइमो समवाश्रो
१. तेवीसं सुयगडज्भयणा पण्णत्ता,
तं जहासमए वेतालिए उवसग्गपरिण्गा थोपरिष्णा नरयविभत्ती महावीरथुई कुसीलपरिभासिए विरिए धम्मे समाही मग्गे समोसरणे श्राहतहिए गंये जमईए गाहा पुंडरीए किरियठाणा श्राहारपरिणा श्रपच्चक्खाणकिरिया अणगारसुर्य ग्रहइज्जं णालंइज्जं ।
२. जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे श्रोसप्पिणीए तेवीसाए जिणाणं सूरुग्गमणमुहतसि केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे |
३. जंबुद्दीवे णं दीवे इमीसे श्रोसप्पिणीए तेवीसं तित्ययरा पुव्वभवे एक्कार संगिणी होत्या, तं जहा --- अजिए संभवे श्रमिणंदणे सुमती पउमप सुपासे चंदप्प हे सुविही सीतले सेज्जसे वासुपुज्जे विमले प्रणते धम्मे संती कुंथू अरे मल्ली मुनिसुव्वए णमो अरिट्ठणेमी पासे वद्धमाणे य ।
समवाय-मुक्तं
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तेईसवां समवाय
१. सूत्रकृत के तेइस अध्ययन प्रज्ञप्त है । जैसे कि
१. समय, २. वैतालिक, ३. उपसर्गपरिज्ञा, ४ स्त्रीपरिज्ञा, ५. नरकविभक्ति, ६. महावीरस्तुति, ७. कुशीलपरिभाषित, ८. वीर्य, ६. धर्म, १०. समाधि, ११. मार्ग, १२. समवसरण, १३. यथातथ्य, १४. ग्रन्थ, १५. यमकीय, १६. गाथा, १७. पुण्डरीक, १५. क्रियास्थान, १६. आहारपरिज्ञा, २०. अप्रत्याख्यानक्रिया, २२. आर्द्रकीय,
२१. अनगारश्रुत, २३. नालन्दीय |
२. जम्बुद्वीप द्वीप में भारतवर्ष की इसी अवसर्पिणी में तेईस जिन / तीर्थकरों को सूर्य के उदीयमान मुहूर्त में प्रवर केवलज्ञान और प्रवर केवल दर्शन समुत्पन्न हुन ।
३. जम्बुद्वीप द्वीप में इस अवसर्पिणी के तेईस तीर्थकर पूर्वभव में ग्यारह अंगधारी थे । जैसे किअजित, संभव, अभिनन्दन, सुमति. पद्मप्रभ, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ, सुविवि, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुन्धु, अर मल्ली मुनिसुव्रत, नमि, श्ररिष्टनेमि, पार्श्व और वर्धमान ।
समवाय-२३