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गिहिणो गिहिमज्झा वसन्ताणं अन्नउत्थिए अट्ठेहि य हेऊहि य पासणेहि य कारणेहि य वागरणेहि य निष्पट्टपसिणवागरणे करेन्ति, सक्का पुणाई, अजो, समणेहिं निग्गन्थेहिं दुवाल - सङ्गं गणिपिडगं अहिजमाणेहिं अन्नउत्थिया अद्वेहि य जाव निष्पट्टपसिणा करित्तए ॥ ९७४ ॥
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ar णं समणा निग्गन्था य निग्गन्थीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स " तह " त्ति एयमहं विणएणं पंडिसुन्ति ॥ १७५ ॥
तर णं से कुण्डकोलिए समणोवासए समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, २ ता पसिणाई पुच्छर, २त्ता अट्ठमादियइ, २ चा जामेव दिसिं पाउन्भूए, तामेव दिसिं पडिगए ॥ १७६ ॥
सामी बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ १७७ ॥
उवासगदसासु
तए णं तस्स कुण्ड कोलियस्स समणोवासयस्स वहूहिं सील जाव भावेमाणस्स चोइस संवच्छराई वीइक्कन्ताई । पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अन्तरा वट्टमाणस्स अन्नया कयाइ जहा कामदेवो तहा जेटूपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसा - लाए जाव धम्मपणत्ति उवसंपजित्ताणं विहरइ ॥ एवं एक्कारस उवासगपडिमाओ ॥ १७८ ॥
तव जाव सोहम्मे कप्पे अरुणज्झए विमाणे जाव अन्तं' काहिइ ॥ १७९ ॥
॥ निक्खेवो ॥
छटुं कुण्ड कोलियज्झयणं समत्तं ॥