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चारों कषायन को रहें उपशम रसमें लाल। पालें पंच महाव्रत निर्मल । पंचा चारनके. प्रतिपालें ॥ पंच समित को सदा उपयोग : सहित पाले उजमाल ।। मन वच तन को . गोपैनिश दिन निज आतम हित दीन दयाल ॥ये छत्तीसों सुगुण युत आचारज भजिये तिरकाल । धरे ध्यान जो भव्य मावधर सो पावे मुख संपति साराायांकी। ॥३॥जस समीप अध्यन करें जिन आगम: को मुनि हित चितलाय ॥ पाठक ऋषि सो कहीं जें तस पग वदत पाप पलाय॥ ग्यारह अग उपंग दुवादश आप पढें अरु . देत पढीय ॥ चरण सित्तरी करण सित्तरी को इमहिंज दे समुझाय ॥ये पच्चीस गुणों