________________
( ४७ ),
a
1
काम कु तूहल क्रीडा कारी ॥ बात कहो' ना उधारी || हँसो मत दे दे तारी ॥ पा०|| ॥ ३ ॥ बाटघाट चिक चउक चच्चर में ।। एक लडी निर धारी | तात भ्रत सम तुल्यं हुनर से ॥ करिये ना बात बिचारी ॥ होय हक नाहक ख्वारी || पा० ॥ ४ ॥ विन का. रण पर घर जाईने ॥ कीजै न थारी म्हारी ॥ पर धन सुत गृह पट भूषण लखि करियै ना ईर खारी || गहो संतोष पिटा - ये । पा० ॥ ५ । पति परदेश गयां पदम निको । तजवो सरस अहारी ॥ पट भूषण: नूतन न पहरिया || तीज त्योहार विनारी ॥ - न जावो बाग मझारी ॥ पा० ||६|| लाख बात की बात एक यह ।। त्यागी चोरी