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॥ अथ लावनी वहिर खडी ॥ "
* अंतरालपा *
॥वुध जन पक्षपात तज देखो व्यर्थ बनो मत मतवारे करो तत्व सरधान ज्ञान उर आन सुनों सज्जन प्यारे। टेर कोंन कुगतिका कारण जग में जासे अवश कुगति जावे ॥ दुर्गति पड़ते प्राणी को कहो कोन सुगति में पहुँ'चावै॥को दातार हुवा इस जग में जसजश अज हूँ जग गावै । कहो महा भारत में कौरव दल के हाथ कहा आवै। वेंगे भव अरणव मैं को हिंसा धरम करण हारे ॥ क• ॥१॥ भीम भयानक विश्व विपनमें भय कोनसा कहाता हैं। कोंन हलाहल जग में जिसके खाने से मर जाता है। वतलावो बो रिपू कोंनसा जो नितं
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